सुभाष चंद्र मौर्य
बाबा रामदेव इस वक्त भारत के सबसे चर्चित योगगुरु हैं। उनकी लोकप्रियता बड़े राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों, धार्मिक महंथों और यहां तक कि मुल्क के नगरों-महानगरों में भरे-पड़े मध्यवर्ग के बीच सबसे अधिक है। ऐसे योगगुरु जो मुंगेर योगाश्रम और रिखिया आश्रम के स्वामी सत्यानंद सरस्वती की तरह निर्विवादित नहीं हैं, फिर भी उनकी स्वीकार्यता चमत्कृत करती है। जेएनयू के शोध छात्र सुभाष मौर्य ने उनकी मंशा और उनके कारोबार का अपनी तरह से विश्लेषण करने की कोशिश की है।बाबा रामदेव के दो चेहरे हैं। एक वो, जिसमें वह लोगों को योग की दीक्षा देते नजर आते हैं। दूसरा वो, जिसमें वह अपने शिविरों में प्रवचन देते नजर आते हैं। दोनों चेहरों को ठीक से जानने और पहचानने की जरूरत है। जब बाबा रामदेव योग की शिक्षा देते नजर आते हैं, खासकर समाचार चैनलों पर, तो बेहद तर्कवादी नजर आते हैं। उस समय बाबा रामदेव ज़ोर देकर कहते हैं कि उन्होंने फलां रोग में वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग करके साबित किया है कि योग इसमें कितना कारगर है। उस समय ऐसा लगता है वह पूरी तरह तर्क बुद्धि में यकीन रखने वाले शख्स हैं। वही बाबा रामदेव जब आस्था चैनल पर प्रवचन देते हैं, तो बिल्कुल आस्थावादी नजर आते हैं। उस समय उनका आदर्श होता है श्रद्धा और भक्ति। उस समय तर्क या प्रमाण को वह सिरे से भूल कर आसाराम बापू या उन्हीं की तरह के तथाकथित संत नज़र आते हैं। दिन-ब-दिन उनके कार्यक्रमों में योग कम, प्रवचन ज्यादा बढता जा रहा है। या यों कहें तो बेहतर होगा कि उनका असली चेहरा सामने आता जा रहा है।नोएडा में इन दिनों बाबा रामदेव का शिविर चल रहा है। किसी भारत विकास परिषद के ख्यातिनाम पुरूष ने इसी शिविर में उन्हें ईश्वर का अवतार कहा और बाबा मुस्कुरा कर सुनते रहे। क्या यही है बाबा रामदेव का असली चेहरा?
अगर बाबा रामदेव की योग शिक्षा को परे रखकर उनके प्रवचनों को ध्यान से सुना जाए तो यह कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि वह हिंदुत्व की ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनके प्रवचनों में सिर्फ हिंदुत्व और उसके आदर्श ही नजर आते हैं। उसमें देश की साझा और सामासिक संस्कृति का रत्ती भर ज़िक्र नहीं आता। बाबा रामदेव के मुरीद करोड़ों में हैं, और वह भी योग की वजह से। करोड़ों लोगों पर उनका प्रभाव भी है। मुश्किल यह है कि लोग उनके पास आते तो हैं योग के माध्यम से अपनी बीमारियों का इलाज पाने के लिए, लेकिन योग के साथ-साथ उन्हें हिंदुत्व का प्रवचन भी मिलता है। और यह घुट्टी इस तरह पिलायी जाती है कि धर्म, आस्था, भावना, समर्पण जैसे शब्द बड़ी मिठास के साथ भीतर तक घुलते जाते हैं। ऐसे लोग भाजपा, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों के लिए बड़े मुफीद पड़ते हैं। आखिर ऐसे ही लोग तो जय श्री राम के नारे पर कारसेवा और क़त्लेआम के लिए निकल सकते हैं।बाबा रामदेव की यह भूमिका ठीक वैसी ही है, जैसे अस्सी के दशक में दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों की रही थी। देश में अस्सी और नब्बे के दशक में सांप्रदायिकता के उभार में इन धारावाहिकों की भूमिका स्वीकार करने में शायद ही किसी को गुरेज हो। इन दोनों धारावाहिकों ने राम एवं कृष्ण के बहाने हिंदुत्व की छवि आम जनमानस में पुनर्जीवित कर दी। और बाबा रामदेव भी यही कर रहे हैं।
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Wednesday, April 25, 2007

हिंदुत्व की ज़मीन पर बाबा रामदेव का योग
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# dharma ka dhandha
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10 comments:
यह पोस्ट पहले ही मोहल्ले पर पोस्ट की जा चुकी है. आप इस तरह एक पोस्ट को फ़िर किसी और ब्लाग पर पोस्ट करके नारद के संशाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं
ये ग़लत बात है। आपने मोहल्ले में छपी चीज़ बिना किसी संदर्भ किसी अनुमति के अपने ब्लॉग पर छापी है। ये नैतिक नहीं है। ऐसा आपने क्यों किया?
एक कहावत है ... तेलची का तेल जले मशालची की ....’ भैये अगर कुछ विरोध है राम देव जी से तो उन जैसा बन कर विरोध कर.. किसने रोका है । जो राम देव जी को ठीक लग रहा है कर रहे है। तेरे को जो ठीक लगे तू भी कर के देख ले ।
हिन्दुओ को तो हिन्दिस्तान मे तेरे जैसे लोगो से ही नुकसान होत है । हिन्दुओ को हिन्दुओ के अलावा कोई नही बर्बाद कर सकता तेरे जैसे लोग जो ना तो 'मौर्या 'का रखते है और काम औरन्गजेब या चन्गेज़ का ।
पहले नाम बदल कर मौर्य की जगह मौलाना या चन्गेज़ खान तख ले.. अगर हिन्दु होने पर ईतना ही पछ्तावा हो रह्ह है तो....
I think mohalla has not the copyright for the article on Ramdeva.
Secondly I think that blogging is for interchanging and sharing ideas and views. This platform should not be misused for blaming or claming each other.
Article writer is also in touch with me and with his consent this article was posted on angare blog. It is matter of chance only that it was first appeared on mohalla. I did not think that there is any unethical in posting this article on angare blog. Neither mohalla has nor angare has any copyright for this article because neither you not me have paid money to writer.
I only want that this article should reach to the readers of angare.
I think Baba Ramdev is a personality who has changed the minds of the youth to Yoga rather the youths are going towards the western culture & westernisation i think is killing our culture & Baba Ramdev is trying to save our culture & u r blaming him for that. I think people like u r really harmful for our Hindy Community, May God Bless u & give u sense to respect Our Religion & culture
The contribution Baba Ramdev is commercialising yoga and hindu setiments. He is earning money, name and fame by exploiting our ancient yoga science.This science is known to us since ancient times. it is wrong to say that Ramdev is trying to popularise Yoga. Actually Yoga is already popular and indians are taking advantage of yoga not because of Ramdeva but because of benefits of Yoga.
If anybody claim that yoga is brainchild of Ramdev, then we are insulting hundreds of saints and yogis who had sacrificed their lives whithoug ganing name and fame unlike Ramdev whose objective is only to make money and fame by Yoga.
A number of scientific research had done not only in india but western contries also about good effects of yoga on our body and mind. It is not Ramdev but others who have proved that Yoga is good for health.
It is nothing but out mental bankrupcy that Ramdev is getting popularity and we are treating him like a god.
Forum for Inculcation of Rational and scientific temperament (FIRST)
अगर रामदेव हिन्दुत्व का प्रचार करें भी तो क्या बुराई है भाई। अकारण परेशान हो रहें हैं आप। हिन्दुत्व विश्व की सर्वोत्तम सोच और जीवन प्रणाली है। पहले निष्पक्ष हो कर हिन्दुत्व को जानें और फिर बाद में अपने विचार प्रकट करें। दोष हिन्दुत्व में नहीं है, दोष है स्वार्थवश हिन्दुत्व की कपटपूर्ण व ग़लत व्याख्या में, जिसे आप जैसे लोग समझ नहीं पाते या इस प्रकार की व्याख्याओं से आपका कोई स्वार्थ सिद्ध होता हो तो आप समझना नहीं चाहते।
छुरी का उपयोग सब्जी काट कर पेट भरने के लिए किया जा सकता है, शल्य क्रिया करके किसी की जान बचाने में भी प्रयोग किया जा सकता है तथा किसी की हत्या करने में भी किया जा सकता है। यह उपयोगकर्ता की समझ व मानसिकता पर निर्भर करता है। आपकी समझ व मानसिकता हत्या वाली नज़र आ रही है।
जैसे अस्सी के दशक में दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों की रही थी। देश में अस्सी और नब्बे के दशक में सांप्रदायिकता के उभार में इन धारावाहिकों की भूमिका स्वीकार करने में शायद ही किसी को गुरेज हो।
सांप्रदायिकता के उभार में इन धारावाहिकों की भूमिका किस प्रकार थी जरा समझाओ भाई। इन धारावाहिकों की किस कड़ी में किसी अन्य धर्म या संप्रदाय पर क्या टिप्पणी की गई थी जिससे सांप्रदायिकता उभरी। जिस काल की गाथा ये धारावाहिक गाते हैं उस काल में तो अन्य धर्मों व संप्रदायों का अस्तित्व ही नहीं था।
रामायण धारावाहिक के समय मैं एक बार मुम्बई गया हुआ था। मुंब्रा में एक इंजीनियर से मिलने उसके घर जाना था। उनसे मिलने के लिए जो समय मैंने मांगा उन्होने मना कर दिया। बोले उस समय रामायण धारावाहिक आता है, उसके बाद आ जाना। मैंने आश्चर्य से पूछा रामायण आप लोग भी देखते हैं। तो वे हंसने लगे, बोले हम ही नहीं हमारे मोहल्ले में पांच सौ मुस्लिम परिवार हैं और सभी देखते हैं। तो मैंने कहा तो हम भी आपके साथ ही देख लेंगे। मैं रामायण के समय उनके घर पंहुचा तो सचमुच पूरा मोहल्ला अपने अपने घरों में टी.वी. के सामने बैठा रुचिपूर्वक धारावाहिक का आनन्द ले रहा था। तो कोई कैसे मान ले कि इन धारावाहिकों ने सांप्रदायिकता बढ़ाई। ये तो आप जैसे लोग झूठा दुष्प्रचार करके सांप्रदायिकता फैलाते हैं।
हिंदू जागृति हेतु मैंने एक ब्लॉग का शुभारंभ किया है
ब्लॉग का पता है http://prakharhindu.blogspot.com/
यह एक ऐसा मंच है जिसके द्वारा मेरे विचारों का प्रचार एवम् प्रसार होगा। हिन्दुओं में अपने धर्म के प्रति उत्साह और प्रेम का संचार होगा। इस ब्लॉग का एक उद्देश्य इस्लाम के चेहरे से शराफ़त का नक़ाब उतारना भी है। साथ ही साथ अपने भाइयों को ये चेताना भी है कि हमें अपनी मातृभूमि का उद्धार करने हेतु स्वयम् ही आगे आना पड़ेगा। कोई हमारी रक्षा के तब तक आगे लिए नहीं आएगा जब तक कि हम आत्मनिर्भर नहीं हो जाते।
kitani ghiya soch hai aapki hundu our hindutav ke bare me .pahale yah jan ki hidu dhram kaya kahta hai fir likh aaj ke rawan.
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