दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर नीचे - अंगारे

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हाथों में अंगारों को लिये सोच रहा था / कोई मुझे अंगारों की तासीर बताये ।

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Sunday, May 20, 2007

दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर नीचे



इस नश्‍वर दुनिया को अलविदा कहने के बर्षों बाद भी मोहम्‍मद रफी अपने लाखों - हजारों प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगे।मोहम्‍मद रफी के प्रति उनके चाहने वालों की दीवानगी समय के साथ बढ्ती ही जा रहीहै। क्षणभंगुर लोकप्रियता और रोज-ब - रोज बदलती चाहतों एवं आस्‍थाओं के इस दौर में यह देखकर आश्‍चर्य होता है कि आज सैकडों-हजारों संगीत प्रेमियों की ऐसी दुनिया है भी जहां रोटी- कपडा और मकान के बाद जीवन की अगर कोई बुनियादी जरूरत है तो वह है मोहम्‍मद रफी की आवाज। आज अमर सिंह- अमिताभ बच्‍चन और अंबानी जैसे अमीरो- दलालों- पुंजीपतियों के हाथों बिक चुके टेलीविजन चैनलों एवं अखबारों में भले ही दिन रात अमिताभ बच्‍चन- एश्‍वर्य राय- अभिषेक बच्‍चन जैसे बिकाउु लोगों का गुणगान होता रहा है और इस बात के ढिढोरे पीटे जाते रहते हो कि अमिताभ बच्‍चन की लोकप्रियता शिखर पर है। लोग उनकी पूजा करते है। उन्‍हें भगवान मानते है- लेकिन शायद इन बिकाउ चैनलों एवं अखबारों को यह पता हो कि मोहम्‍मद रफी नाम के शख्‍य जो हमसे वर्षों पहले बिछुड गया उनके चाहने वालों की कतार लगी है और उनकेऐसे अनगिनत दीवाने हैं जिनकी दीवानगी देखकर शायद खुदा भी दांतों तले उंगली दबा लें।यह ब्‍लॉग इन्‍हीं दीवानों की दीवानगी को समर्पित है।मोहम्‍मद रफी कीसुरमयी और खनकती आवाज का जादू आज दिनों दिन सघन होता जा रहा हैा उनके चाहने वालों में ऐसे लोगों की संख्‍या हजारों में होगी जिनके लिये जीवन की पहली और आखिर शर्त शायद यही आवाज है। इतने दिनों में एक नहींसैकडों गायक आये और चले गये लेकिन एक ऐसी आवाज जो आज तक हमारे दिलों दिमाग पर कायम है और शायद हमेशा रहेगवह है- मोहम्‍मद रफी की आवाज ।मोहम्‍मद रफी के दीवाने आपको कहीं भी मिल सकते हैं। चाहे दिल्‍ली के जी बी माथुर हो--- माले के युसुफ रशीद हो- केरल के अलफुजा के कुंडली सोफी हो---- अहमदपुरमहाराष्‍ट्र के सिद्धार्थ सूर्यवंशी हो-- बेंगलूर के पी नारायण हो- मुंबई के बीन्‍नू नायर या कपिल खैरनार हो-- उल्‍ल्‍हासनगर के प्रीतम मेघानी हो-- इन सब के जीवन की एक ही तमन्‍ना है मोहम्‍मद रफी जिसने उनके जीवन में आनंद और सुकुन बक्‍शा उसके लिये कुछ करना। सब अपने तरीके से इस काम में लगे है। लेकिन हम सब ने महसूस किया है हम अगर एकजुट होकर काम करें तो काफी कुछ किया जा सकता है।दिल्‍ली में इस काम को अंजाम देने के लिये रफी स्‍मृति नामक संस्‍था की स्‍थापना को प्रयास किया जा रहा है। सिद्धार्थ सूर्यवंशी ने अहमदनगर में पदमश्री मोहम्‍मद रफी स्‍मृति की स्‍थापना की है। मुंबई में बीन्‍नू नायर ने मोहम्‍मद रफी म्‍यूजिक अकादमी बनायी है। इसी तरह पी नारायणन मोहम्‍मद रफी के चाहने वालों की डायरेक्‍ट्री बनाने में जुटे है। इस लेख के लेखक ने मोहम्‍मद रफी की जीवनी -- मेरी आवाज सुनों - लिखी है जो शीघ्र ही प्रकाशित होकर बाजार में आने वाली है।दुनिया के अलग - अलग हिस्‍सों में और भी लोग अपने - अपने तरह से सक्रिय है।दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर नीचेमोहम्‍मद रफी के दीवानेइस नश्‍वर दुनिया को अलविदा कहने के बर्षों बाद भी मोहम्‍मद रफी अपने लाखों - हजारों प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगे।मोहम्‍मद रफी के प्रति उनके चाहने वालों की दीवानगी समय के साथ बढ्ती ही जा रहीहै। क्षणभंगुर लोकप्रियता और रोज-ब - रोज बदलती चाहतों एवं आस्‍थाओं के इस दौर में यह देखकर आश्‍चर्य होता है कि आज सैकडों-हजारों संगीत प्रेमियों की ऐसी दुनिया है भी जहां रोटी- कपडा और मकान के बाद जीवन की अगर कोई बुनियादी जरूरत है तो वह है मोहम्‍मद रफी की आवाज। आज अमर सिंह- अमिताभ बच्‍चन और अंबानी जैसे अमीरो- दलालों- पुंजीपतियों के हाथों बिक चुके टेलीविजन चैनलों एवं अखबारों में भले ही दिन रात अमिताभ बच्‍चन- एश्‍वर्य राय- अभिषेक बच्‍चन जैसे बिकाउु लोगों का गुणगान होता रहा है और इस बात के ढिढोरे पीटे जाते रहते हो कि अमिताभ बच्‍चन की लोकप्रियता शिखर पर है। लोग उनकी पूजा करते है। उन्‍हें भगवान मानते है- लेकिन शायद इन बिकाउ चैनलों एवं अखबारों को यह पता हो कि मोहम्‍मद रफी नाम के शख्‍य जो हमसे वर्षों पहले बिछुड गया उनके चाहने वालों की कतार लगी है और उनकेऐसे अनगिनत दीवाने हैं जिनकी दीवानगी देखकर शायद खुदा भी दांतों तले उंगली दबा लें।यह ब्‍लॉग इन्‍हीं दीवानों की दीवानगी को समर्पित है।मोहम्‍मद रफी कीसुरमयी और खनकती आवाज का जादू आज दिनों दिन सघन होता जा रहा हैा उनके चाहने वालों में ऐसे लोगों की संख्‍या हजारों में होगी जिनके लिये जीवन की पहली और आखिर शर्त शायद यही आवाज है। इतने दिनों में एक नहींसैकडों गायक आये और चले गये लेकिन एक ऐसी आवाज जो आज तक हमारे दिलों दिमाग पर कायम है और शायद हमेशा रहेगवह है- मोहम्‍मद रफी की आवाज ।मोहम्‍मद रफी के दीवाने आपको कहीं भी मिल सकते हैं। चाहे दिल्‍ली के जी बी माथुर हो--- माले के युसुफ रशीद हो- केरल के अलफुजा के कुंडली सोफी हो---- अहमदपुरमहाराष्‍ट्र के सिद्धार्थ सूर्यवंशी हो-- बेंगलूर के पी नारायण हो- मुंबई के बीन्‍नू नायर या कपिल खैरनार हो-- उल्‍ल्‍हासनगर के प्रीतम मेघानी हो-- इन सब के जीवन की एक ही तमन्‍ना है मोहम्‍मद रफी जिसने उनके जीवन में आनंद और सुकुन बक्‍शा उसके लिये कुछ करना। सब अपने तरीके से इस काम में लगे है। लेकिन हम सब ने महसूस किया है हम अगर एकजुट होकर काम करें तो काफी कुछ किया जा सकता है।दिल्‍ली में इस काम को अंजाम देने के लिये रफी स्‍मृति नामक संस्‍था की स्‍थापना को प्रयास किया जा रहा है। सिद्धार्थ सूर्यवंशी ने अहमदनगर में पदमश्री मोहम्‍मद रफी स्‍मृति की स्‍थापना की है। मुंबई में बीन्‍नू नायर ने मोहम्‍मद रफी म्‍यूजिक अकादमी बनायी है। इसी तरह पी नारायणन मोहम्‍मद रफी के चाहने वालों की डायरेक्‍ट्री बनाने में जुटे है। इस लेख के लेखक ने मोहम्‍मद रफी की जीवनी -- मेरी आवाज सुनों - लिखी है जो शीघ्र ही प्रकाशित होकर बाजार में आने वाली है।दुनिया के अलग - अलग हिस्‍सों में और भी लोग अपने - अपने तरह से सक्रिय है। दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर नीचेमोहम्‍मद रफी के दीवानेइस नश्‍वर दुनिया को अलविदा कहने के बर्षों बाद भी मोहम्‍मद रफी अपने लाखों - हजारों प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगे।मोहम्‍मद रफी के प्रति उनके चाहने वालों की दीवानगी समय के साथ बढ्ती ही जा रहीहै। क्षणभंगुर लोकप्रियता और रोज-ब - रोज बदलती चाहतों एवं आस्‍थाओं के इस दौर में यह देखकर आश्‍चर्य होता है कि आज सैकडों-हजारों संगीत प्रेमियों की ऐसी दुनिया है भी जहां रोटी- कपडा और मकान के बाद जीवन की अगर कोई बुनियादी जरूरत है तो वह है मोहम्‍मद रफी की आवाज। आज अमर सिंह- अमिताभ बच्‍चन और अंबानी जैसे अमीरो- दलालों- पुंजीपतियों के हाथों बिक चुके टेलीविजन चैनलों एवं अखबारों में भले ही दिन रात अमिताभ बच्‍चन- एश्‍वर्य राय- अभिषेक बच्‍चन जैसे बिकाउु लोगों का गुणगान होता रहा है और इस बात के ढिढोरे पीटे जाते रहते हो कि अमिताभ बच्‍चन की लोकप्रियता शिखर पर है। लोग उनकी पूजा करते है। उन्‍हें भगवान मानते है- लेकिन शायद इन बिकाउ चैनलों एवं अखबारों को यह पता हो कि मोहम्‍मद रफी नाम के शख्‍य जो हमसे वर्षों पहले बिछुड गया उनके चाहने वालों की कतार लगी है और उनकेऐसे अनगिनत दीवाने हैं जिनकी दीवानगी देखकर शायद खुदा भी दांतों तले उंगली दबा लें।यह ब्‍लॉग इन्‍हीं दीवानों की दीवानगी को समर्पित है।मोहम्‍मद रफी कीसुरमयी और खनकती आवाज का जादू आज दिनों दिन सघन होता जा रहा हैा उनके चाहने वालों में ऐसे लोगों की संख्‍या हजारों में होगी जिनके लिये जीवन की पहली और आखिर शर्त शायद यही आवाज है। इतने दिनों में एक नहींसैकडों गायक आये और चले गये लेकिन एक ऐसी आवाज जो आज तक हमारे दिलों दिमाग पर कायम है और शायद हमेशा रहेगवह है- मोहम्‍मद रफी की आवाज ।मोहम्‍मद रफी के दीवाने आपको कहीं भी मिल सकते हैं। चाहे दिल्‍ली के जी बी माथुर हो--- माले के युसुफ रशीद हो- केरल के अलफुजा के कुंडली सोफी हो---- अहमदपुरमहाराष्‍ट्र के सिद्धार्थ सूर्यवंशी हो-- बेंगलूर के पी नारायण हो- मुंबई के बीन्‍नू नायर या कपिल खैरनार हो-- उल्‍ल्‍हासनगर के प्रीतम मेघानी हो-- इन सब के जीवन की एक ही तमन्‍ना है मोहम्‍मद रफी जिसने उनके जीवन में आनंद और सुकुन बक्‍शा उसके लिये कुछ करना। सब अपने तरीके से इस काम में लगे है। लेकिन हम सब ने महसूस किया है हम अगर एकजुट होकर काम करें तो काफी कुछ किया जा सकता है।दिल्‍ली में इस काम को अंजाम देने के लिये रफी स्‍मृति नामक संस्‍था की स्‍थापना को प्रयास किया जा रहा है। सिद्धार्थ सूर्यवंशी ने अहमदनगर में पदमश्री मोहम्‍मद रफी स्‍मृति की स्‍थापना की है। मुंबई में बीन्‍नू नायर ने मोहम्‍मद रफी म्‍यूजिक अकादमी बनायी है। इसी तरह पी नारायणन मोहम्‍मद रफी के चाहने वालों की डायरेक्‍ट्री बनाने में जुटे है। इस लेख के लेखक ने मोहम्‍मद रफी की जीवनी -- मेरी आवाज सुनों - लिखी है जो शीघ्र ही प्रकाशित होकर बाजार में आने वाली है।दुनिया के अलग - अलग हिस्‍सों में और भी लोग अपने - अपने तरह से सक्रिय है।दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर नीचेमोहम्‍मद रफी के दीवानेइस नश्‍वर दुनिया को अलविदा कहने के बर्षों बाद भी मोहम्‍मद रफी अपने लाखों - हजारों प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगे।मोहम्‍मद रफी के प्रति उनके चाहने वालों की दीवानगी समय के साथ बढ्ती ही जा रहीहै। क्षणभंगुर लोकप्रियता और रोज-ब - रोज बदलती चाहतों एवं आस्‍थाओं के इस दौर में यह देखकर आश्‍चर्य होता है कि आज सैकडों-हजारों संगीत प्रेमियों की ऐसी दुनिया है भी जहां रोटी- कपडा और मकान के बाद जीवन की अगर कोई बुनियादी जरूरत है तो वह है मोहम्‍मद रफी की आवाज। आज अमर सिंह- अमिताभ बच्‍चन और अंबानी जैसे अमीरो- दलालों- पुंजीपतियों के हाथों बिक चुके टेलीविजन चैनलों एवं अखबारों में भले ही दिन रात अमिताभ बच्‍चन- एश्‍वर्य राय- अभिषेक बच्‍चन जैसे बिकाउु लोगों का गुणगान होता रहा है और इस बात के ढिढोरे पीटे जाते रहते हो कि अमिताभ बच्‍चन की लोकप्रियता शिखर पर है। लोग उनकी पूजा करते है। उन्‍हें भगवान मानते है- लेकिन शायद इन बिकाउ चैनलों एवं अखबारों को यह पता हो कि मोहम्‍मद रफी नाम जो हमसे वर्षों पहले बिछुड गया उनके चाहने वालों की कतार लगी है और उनकेऐसे अनगिनत दीवाने हैं जिनकी दीवानगी देखकर शायद खुदा भी दांतों तले उंगली दबा लें।ॉग इन्‍हीं दीवानों की दीवानगी को समर्पित है।मोहम्‍मद रफी कीसुरमयी और खनकती आवाज का जादू आज दिनों दिन सघन होता जा रहा हैा उनके चाहने वालों में ऐसे लोगों की ोगी जिनके लिये जीवन की पहली और आखिर शर्त शायद यही आवाज है। इतने दिनों में एक नहींसैकडों गायक आये और चले गये लेकिन एक ऐसी आवाज जो आज तक हमारे दिलों दिमाग पर कायम है और शायद हमेशा रहेगवह है- मोहम्‍मद रफी की आवाज ।मोहम्‍मद रफी के दीवाने आपको कहीं भी मिल सकते हैं। चाहे दिल्‍ली के जी बी माथुर हो--- माले के युसुफ रशीद हो- केरल के अलफुजा के कुंडली सोफी हो---- अहमदपुरमहाराष्‍ट्र के सिद्धार्थ सूर्यवंशी हो-- बेंगलूर के पी नारायण हो- मुंबई के बीन्‍नू नायर या कपिल खैरनार हो-- उल्‍ल्‍हासनगर के प्रीतम मेघानी हो-- इन सब के जीवन की एक ही तमन्‍ना है मोहम्‍मद रफी जिसने उनके जीवन में आनंद और सुकुन बक्‍शा उसके लिये कुछ करना। सब अपने तरीके से इस काम में लगे है। लेकिन हम सब ने महसूस किया है हम अगर एकजुट होकर काम करें तो काफी कुछ किया जा सकता है।दिल्‍ली में इस काम को अंजाम देने के लिये रफी स्‍मृति नामक संस्‍था की स्‍थापना को प्रयास किया जा रहा है। सिद्धार्थ सूर्यवंशी ने अहमदनगर में पदमश्री मोहम्‍मद रफी स्‍मृति की स्‍थापना की है। मुंबई में बीन्‍नू नायर ने मोहम्‍मद रफी म्‍यूजिक अकादमी बनायी है। इसी तरह पी नारायणन मोहम्‍मद रफी के चाहने वालों की डायरेक्‍ट्री बनाने में जुटे है। इस लेख के लेखक ने मोहम्‍मद रफी की जीवनी -- मेरी आवाज सुनों - लिखी है जो शीघ्र ही प्रकाशित होकर बाजार में आने वाली है।दुनिया के अलग - अलग हिस्‍सों में और भी लोग अपने - अपने तरह से सक्रिय है।

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

विप्लव जी, रफी जी के बारे में पढ कर पुरानी यादे ताजा हो गई।हम तो उन की गाई गजलों के दिवाने हैं।

आलोक said...

c/पुंजीपतियों/पूँजीपतियों
c/शख्य/शख्स

क्या मोहम्मद रफ़ी पर हिन्दी में कोई जालस्थल है?

journalist india said...

Alok Ji
Mohammad Rafi par atyant upyogi website hai -
www.mohdrafi.com
iske alawa bhee anek websites par apako mohammad rafi ke bare mein jankariyan mil jayegi.
Vinod viplav

Anonymous said...

files mumford disputed seismic explored automodule activity indemnify alley over nsaa
lolikneri havaqatsu

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