अंदाज से बदली हिन्दी फिल्मों का अंदाज - अंगारे

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हाथों में अंगारों को लिये सोच रहा था / कोई मुझे अंगारों की तासीर बताये ।

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Friday, June 5, 2009

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अंदाज से बदली हिन्दी फिल्मों का अंदाज

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हिन्दी सिनेमा के स्वर्ण युग की एक महत्वपूर्ण फिल्म अंदाज का एक दृश्य है जो कई बातों के लिये आज भी जानी जाती है। सन् 1949 में महबूब खान ने मेला और शहीद के जरिये फिल्मी दुनिया में स्थापित हो चुके दिलीप कुमार को पहली बार फिल्म अंदाज के जरिये राज कपूर और नरगिस के साथ काम करने का मौका दिया और अंदाज को आशातीत सफलता मिली और दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा के ट्रेजेडी किंग के नाम से जाने जाने लगे।इस फिल्म के बाद पहली बार मोहम्मद रफी को राजकपूर की आवाज के रूप में और मुकेश को दिलीप कुमार की आवाज के रूप में इस्तेमाल किया गया। अंदाज ने फिल्म निर्माण की धारा ही बदल दी। फिल्म ‘अंदाज’ के बाद बरसों साल प्रेम त्रिकोण पर आधारित फिल्में बनती रहीं, जिसकी चरम परिणति राज कपूर की ‘संगम’ फिल्म में हुई। आज भी इस विषय पर फिल्में बनती रही। इस फिल्म में पहली बार दिलीप कुमार ने एंटी हीरो की भूमिका निभाई। यह फिल्म की कहानी को आधार बनाकर शाहरूख खान अभिनीति डर फिल्म बनी जो सुपर हिट रही। अंदाज में दिलीप कुमार नर्गिस को घोड़े पर से गिरने से बचाते हैं और इसके साथ ही दोनों मे दोस्ती हो जाती है। दिलीप कुमार नर्गिस पर फिदा हो जाते हैं, तभी राज कपूर की एंट्री होती है। राज कपूर और नर्गिस पहले से एक-दूसरे से मुहब्बत करते हैं। उस दौर के नजरिए से इसे एक बोल्ड फिल्म कहा जा सकता है, क्योंकि चालीस के दशक में दर्शक किसी एक हिंदुस्तानी औरत की जिंदगी में एक साथ दो पुरूषों की मौजूदगी को स्वीकार करने के लिए मानसिक और सामाजिक रूप से तैयार नहीं थे। इसके बावजूद बेहतरीन तकनीक, यादगार संगीत और शानदार अदाकारी के दम पर यह फिल्म कामयाब रही।

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