बाज़ार केवल धनवान बना सकता है, महान नहीं!
विनोद विप्लव
हम यह मान कर चल रहे थे कि मोहल्ले में अमिताभ बड़े कि दिलीप साहब वाली बहस का लगभग अंत हो चुका है, लेकिन दरअसल ऐसा नहीं हुआ। यूनीवार्ता के मुख्य उपसंपादक और सिनेमा पर गाहे-बगाहे और कभी कभी बहुत तेज़ी से कलम चलाने वाले विनोद विप्लव ने इसी मुद्दे पर कुछ और बातें कह दीं। यानी बात निकली है, तो यहीं कहीं नहीं रह जाने वाली है।अकारण ही अमिताभ बच्चन को दिलीप कुमार से महान और प्रतिभावान साबित करने की स्वार्थपूर्ण कोशिशों से भरा अभिसार का आलेख मौजूदा समय में उभरती अत्यंत ख़तरनाक प्रवृत्ति का परिचायक है। यह दरअसल हमारे समाज और संस्कार में वर्षों से कायम हमारे आदर्शों, मूल्यों एवं प्रतीकों को नष्ट करके बाज़ारवाद एवं पूंजीवाद के ढांचे में फ़िट बैठनेवाले प्रतीकों को गढ़ने एवं उन्हें जनमानस के लिए स्वीकार्य बनाने की साजिश का हिस्सा है। दुर्भाग्य से अभिसार जैसे मीडियाकर्मी जाने अनजाने इस साजिश के हिस्सा बन रह हैं। मौजूदा बाज़ारवाद को सिद्धांतवादी, आत्मसम्मानी और अभिमानी दिलीप कुमार जैसे प्रतीकों की जरूरत नहीं है, बल्कि अमिताभ बच्चन जैसे मौकापरस्त, शातिर, अनैतिक और समझौतावादी जैसे उन मूल्यों से भरे प्रतीकों एवं पात्रों की जरूरत है, जिन मूल्यों को बाज़ार पोषित करना चाहता है। बाज़ार को दिलीप कुमार जैसे पुराने समय के प्रतीकों की जरूरत नहीं है। ज़ाहिर है कि उसके लिए एसे प्रतीक बेकार हैं। ऐसा इसलिए कि ये प्रतीक उपभोक्ताओं के बीच विभिन्न उत्पादों और मालों को बेचने में सहायक नहीं होते। बाजार की नजर में ये प्रतीक मूल्यहीन होते हैं।भूपेन सिंह का यह सवाल वाजिब है कि अमिताभ को महानायक बनाने में बाज़ार और मास मीडिया का रोल नहीं। तो एक औसत अभिनेता मौजूदा समय क सबसे मंहगे और सर्वाधिक प्रभावी ब्रांड में कैसे तब्दील हो गया। अमिताभ बच्चन के अतीत से वाकिफ़ लोगों को पता है- जो आवाज़ मौजूदा बाज़ार और आज की पीढ़ी को अजीज़ है, वह आकाशवाणी की मामूली नौकरी की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी। अब कोई यह कहे कि आकाशवाणी को प्रतिभा की पहचान नहीं है, तो यह कुतर्क ही है, क्योंकि इसी आकाशवाणी ने अपने समय के अनेक गायकों और संगीतकारों को पोषित किया, जिनके संगीत और आवाज़ का जादू आज तक कायम है।बाज़ार और मीडिया की प्रतिभा की पहचानने की क्षमता की वकालत करने वालों को यह बता देना मुनासि़ब होगा कि आज मीडिया और बाजार ने जिन प्रतिभाओं को चुना है, उनमें राखी सावंत, मल्लिका शेरावत, हिमेश रेशमिया और अभिजीत सावंत प्रमुख हैं। हो सकता है कि आकाशवाणी से एक महान प्रतिभा को पहचानने में चूक हुई हो, लेकिन जानने वाले यह जानते हैं कि अगर तेजी बच्चन को पंडित नेहरु से नजदीकियां प्राप्त नहीं होतीं, राजीव गांधी अमिताभ बच्चन को लेकर उस समय के निर्माता-निर्देशकों के पास नहीं जाते और इंदिरा गांधी का वरदहस्त नहीं प्राप्त होता, जिसके कारण सुनील दत्त सरीखे अभिनेताओं को मिलने वाले रोल अमिताभ को मिले, तो अमिताभ बच्चन का दर्जा बॉलीवुड में एक्स्ट्रा कलाकार से अधिक नहीं होता। यह अलग बात है कि अमिताभ बच्चन अमर सिंह जैसे धूर्त विदूषकों के जाल में फंस कर गांधी परिवार को नीचा दिखाने में लगे हैं।अभिसार जैसे अमिताभ की प्रतिभा के अंध भक्त लोग यह तर्क दे सकते हैं कि अगर अमिताभ बच्चन में प्रतिभा नहीं होती, तो वह इस कदर लोकप्रिय कैसे होते। लेकिन क्या लोकप्रियता हमेशा प्रतिभा और गुणवत्ता का परिचायक होती है? आज अमर सिंह जैसे दलाल संभवत नेहरु और गांधी से भी लोकप्रिय हैं, तो क्या वह गांधी से भी बड़े राजनीतिज्ञ हो गये? गुलशन नंदा और रानू बहुत अधिक लोकप्रिय होने के कारण क्या प्रेमचंद, निराला और टैगोर से बड़े लेखक हो गये। क्या दीपक चौरसिया जैसे लपुझंग लोग आज के सबसे बड़े पत्रकार हो गये? क्या मल्लिका शेरावत और राखी सावंत जैसी बेशर्म लडकियां स्मिता पाटिल से बड़ी अदाकारा हो गयीं? इसी तरह से क्या अमिताभ बच्चन आज के समय के सबसे बडे़ ब्रांड और सबसे अधिक लोकप्रिय होने के कारण दिलीप कुमार, संजीवकुमार, राजकपूर, देवानंद और यहां तक कि आज के समय के नसीरुद्दीन शाह से बडे़ और महान कलाकार हो गये?अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता पर अभिसार को इतना भरोसा है कि वह यह दावा कर बैठे कि अमिताभ बच्चन को ध्यान में रख कर 20 साल बाद भी फिल्में बनायी जाती रहेंगी। अभिसार की यह बात पढ़नेवाला उनके इतिहास बोध पर तरस खायेगा। भूपेन सिंह की इस बात से मैं सहमत हूं कि अमिताभ के चेहरे में कभी अमर सिंह की बेहूदगी दिखाई देती है, तो कभी मुलायम सिंह जैसा कॉर्पोरेट समाजवाद नज़र आता है। कभी वह किसी जुआघर का मालिक लगता है, तो कभी पैसे के लिए झूठ बेचता बेईमान। किसी को बैठे-बिठाये करोड़पति होने के लिए लुभानेवाला ये शख्स बहुत घाघ भी लगता है। कैडबरी के ज़हरीले कीटाणु बेचता। पैसे के लिए अपनी होने वाली बहू के साथ भी किसी भी तरह का नाच नाचने को तैयार।जो आदमी अमर सिंह जैसे घटिया दलाल की दलाली में इतना नीचे गिर जाये कि उसके मुंह से निठारी के मासूम बच्चों के लिए सहानुभूति के दो शब्द निकलने के बजाय उत्तर प्रदेश में जुर्म कम नज़र आये, वो शख्स भले ही कितना बड़ा अभिनेता या नेता बन जाये, इतना बड़ा कतई नहीं बन सकता कि उसे बड़ा साबित दिखाने के लिए दिलीप कुमार जैसे शख्स की तौहीन की जाए। सच तो यह है कि अमिताभ बच्चन को दिलीप कुमार की महानता के सबसे निचले पायदान तक पहुंचने के लिए एक जन्म तो क्या हज़ार जन्म लेने पड़ेंगे।
Post Top Ad
Responsive Ads Here
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Post Bottom Ad
Responsive Ads Here
Author Details
Templatesyard is a blogger resources site is a provider of high quality blogger template with premium looking layout and robust design. The main mission of templatesyard is to provide the best quality blogger templates which are professionally designed and perfectlly seo optimized to deliver best result for your blog.
1 comment:
बहुत मजा आय पढकर... "लपुझंग" शब्द का अर्थ बतायें वाकई आजकल के मीडिया में कई लपुझंग लोग भर गये हैं..जिन्हें मीडिया में ना होकर किसी सिनेमाहॉल में गेटकीपर होना चाहिये था.. खैर अमिताभ की आलोचना में एक बात तो आप जोडना ही भूल गये.. कि इन महानुभाव ने एक जमीन के मामूली से टुकडे के लिये अपने आपको किसान घोषित करवा लिया..सचमुच ऐसे ही हैं हमारे आज के हीरो जी... सम्पर्क पता suresh.chiplunkar@gmail.com
Post a Comment