आमरीकी पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश पर जूते फेंके जाने की प्रेरणा लेकर भारत में नेताओं की तरफ जूते उछाले जाने की प्रथा महामारी की तरह तेजी से फैल रही है लेकिन राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी घटनायें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रति लोगों के मोहभंग होने का प्रतीक है। भारत में सबसे पहले जरनैल सिंह नामक सिख पत्रकार जरनैल सिंह ने गृह मंत्री पी चिदम्बरम् की तरफ जूते उछाले और आज अहमदाबाद में इंजीनियरिंग के एक बेरोजगार छात्र प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की तरफ जूते उछाल दिया। इससे पहले सांसद नवीन जिंदल, भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी, फिल्म अभिनेता जितेन्द्र की तरफ जूते उछाले जा चुके हैं।एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स / ए डी आर / के राष्ट्रीय संयोजक अनिल बैरवाल का कहना है कि हालांकि ऐसी घटनायें मौजूदा राजनीति व्यवस्था के प्रति लोगों की हताशा की ओर इशारा करती है लेकिन मीडिया और खास तौर पर टेलीविजन चैनल ऐसी प्रवृतियांें को बढ़ावा दे रहे हैं। श्री बैरवाल ने कहा कि आम तौर पर मीडिया प्रदर्शन, अनशन, धरना और सत्याग्रह जैसे लोकतांत्रिक विरोध के तरीकों को दरकिनार कर देता है जबकि जूते फेंकने जैसी घटनाओं को मीडिया के जरिये खूब प्रचार मिलता है और जूते फेकने जैसे उटपटांग करतूत करने वाले लोग रातों रात सुर्खियों में आ जाते हैं। ऐसे में लोग ऐसी हरकतों करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं। राजनीतिक मनोवैज्ञानिक आशिष नंदी कहते हैं, जूते फेंकने जैसी घटनायें महामारी बन गयी है। गुजरात के मानवविज्ञान शिव विश्वनाथन् का कहना है कि जूते फेकने की यह नयी प्रथा काफी हद तक मीडिया की देन है जो विवादों को बढ़ावा देता है। उनका कहना है कि जूते फेंकने की घटनायें भारत की परम्परागत चुनावी राजनीति में एक नया मोड़ है और इसे हमें प्रोत्साहित और गौरवान्वित नहीं करना चाहिये।कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला का कहना है कि इस तरह की घटनायें प्रचार पाने के लिये होती है और मीडिया को ऐसी घटनाओं को बढ़ावा नहीं देना चाहिये। समाज विज्ञानियों का कहना है कि भारत में ऐतिहासिक तौर पर जूते को नीची निगाह से देखा जाता है और जूते फेंकना एवं जूते मारना किसी को घोर रूप से अपमानित करने का तरीका माना जाता है। भारत के लोग जिस किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं उनके पुतले बनाकर उन्हें जूते के माला पहनाते हैं।श्री अनिल बैरवाल का कहना है कि हालांकि जूते उछालने की बढ़ती घटनायें लोकतांत्रिक समाज के लिये दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन यह ऐसी घटनाओं का बढ़ना इस बात का भी संकेत है लोगों की नजर में राजनीतिज्ञों के प्रति सम्मान घट रहा है और यह नेताओं के लिये भी एक तरह की चेतावनी है।
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1 comment:
सही लिखा है आपने।
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