मोहम्‍मद रफी की अंतिम यात्रा - अंगारे

अंगारे

हाथों में अंगारों को लिये सोच रहा था / कोई मुझे अंगारों की तासीर बताये ।

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Sunday, August 9, 2009

मोहम्‍मद रफी की अंतिम यात्रा

मोहम्‍मद रफी का दुनिया में आना और इस नश्‍वर दुनिया से उनका रूखसत होना उनके चाहने वाले लाखों करोडों लोगों के लिये इतिहास की सबसे बडी घटना थी और हमेशा के लिये रहेगी। कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है, लेकिन मोहम्‍मद रफी के मामले में यह कथन असत्‍य साबित होता है। महात्‍मा गांधी के बाद मोहम्‍मद रफी ही एकमात्र ऐसे शख्‍स थे जिनकी शवयात्रा में इतना भारी जनशैलाब देखने को मिला। मोहम्‍मद रफी की शव यात्रा जिस समय निकाली जा रही थी, मुंबई में भयानक बारिश हो रही थी मानो आकाश भी आंसू बहा रहा हो। इतनी भारी बारिश में भी मोहम्‍मद रफी के इंतकाल की खबर आग की तरह फैली और जिसने भी सुना वह बांद्रा की मस्ज्दि की तरफ दौड पडा। यहां पेश वीडियो रफी साहब की शव यात्रा में जमा अभूतपूर्व जन शैलाब का सबूत है। ऐसा ही होता है जननायक और जनगायक का जाना। मोहम्‍मद रफी के बाद फिर ऐसा जनशैलाब और कब उमडा। मुझे तो याद नहीं आता किसी को पता हो तो बतायें। यहां पेश है मोहम्‍मद रफी की अंतिम यात्रा का वर्णन महान संगीतकार नौशाद के शब्‍दों में।

रमजान में मोहम्‍मद रफी का इंतेकाल हुआ था और रमजान में भी अलविदा के दिन। बांद्रा की बडी मस्जिद में उनकी नमाजे जनाजा हुई थी। पूरा ट्रैफिक्‍ जाम था। क्‍या हिंदू, क्‍या सिख, क्‍या ईसाई, हर कौम सडकों पर आ गई थी।

नमाज के पीछे जो लोग नमाज में शरीक थे उनमें राज कपूर, राजेन्‍द्र कुमार, सुनील दत्‍त के अलावा इंडस्‍ट्री के तमाम लोग मौजूद थे। हर मजहब के लोगों ने उनको कंधा दिया। कब्रिस्‍तान की दीवारों पर शीशे लगे हुये थे। लोग उस पर चढ गये थे। उनके हाथों से खून बह रहा था लेकिन रफी के अंतिम दर्शन के लिये वे उस दीवार पर चढ-चढ कर अंदर फांद रहे थे। मैंने यह मंजर भी अपनी आंखों से देखा था कि लोग उनकी कब्र से मिट.टी शीशी में भरकर ले गए थे कि भई हम इसे अपने घर में रखेंगे और इसकी पूजा करेंगे। ’’ - पेंग्विन बुक्‍स से प्रकाशित चौधरी जिया इमाम लिखित नौशाद की जीवनी नौशाद जर्रा जो आफताब बना से साभार।

- विनोद विप्‍लव

1 comment:

Anonymous said...

I remember seeing this on DD when Rafi died. In fact they did a longer programme, which was quite emotional, if some one could have it in this age of internet.

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages