भूख है तो सब्र कर] रोटी नहीं तो क्या हुआ]आजकल दिल्ली में है] जेरे बहस ये मद्दुआ
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहींपेट भरकर गालियां दो] आह भरकर बद्दुआ।
इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो जब तलक खिलते नहीं] ये कोयले देंगे धुंआ।
इस शहर में वो कोई बारात हो या वारदातअब किसी भी बात पर खुलती नहीं है खिड़कियां
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2 comments:
अरे ये भी तो बताओ दोस्त कि ये गज़ल दुष्यंत कुमार की है।
It is neednot to say that this Gajal is written by Dushyant Kumar. Everybody who has some idea about poetry, know this.
This gajal was written many years back, but today this gajal has great relevance.
Subodh Kumar
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