लाइलाज बीमारियों में कारगर है होलिस्टिक चिकित्सा

लाइलाज बीमारियों में कारगर है होलिस्टिक चिकित्सा
लाइलाज बीमारियों एवं दर्द से मुक्ति पाने के लिये मनुष्य सदियों से प्रयत्नरत है। प्राचीन समय में बीमारियों से छुटकारा पाने के लिये लोग वैद्य-हकीमों, जादूगरों, शोमैनों और पुजारियों की शरण लेते थे। आधुनिक समय में बीमारियों के इलाज के लिये हालांकि अनेक आधुनिक औषधियों, आधुनिक किस्म की सर्जरी और अनेक चिकित्सा विधियों का विकास हो चुका है लेकिन अक्सर देखा जाता है कि उपचार की ऐलोपैथी की औषधियों एवं आधुनिक चिकित्सा विधियों बीमारियां दूर होने के बजाय गंभीर होती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब दवाईयां और इंजेक्शन निष्प्रभावी हो जाते हैं। कई बार ये दवाईयां खुद मर्ज से कहीं अधिक परेशानी पैदा करती हैं। इन दवाईयों के दुष्प्रभाव के कारण नयी बीमारियां पैदा हो जाती हंै। आज तक ऐसी कोई दवाई नहीं बनी जो पूरी तरह से दुष्प्रभाव रहित हो। कई बार ऐलोपैथी रक्त स्राव अथवा दिमागी दौरे के कारण बन सकती हैं जिनसे रोगी की मौत तक हो सकती है। आज जब दर्दनिवारक दवाईयों के अंधाधुंध सेवन ने एक महामारी का रूप धारण कर लिया है वैसे में अनेक देशों में होलिस्टिक चिकित्सा को दर्द निवारण एवं प्रबंधन की कारगर एवं दुष्प्रभावरहित पद्धति के रूप में लोकप्रियता हासिल हो रही है।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के होलिस्टिक विशेषज्ञ डा. रविन्द्र के. तुली का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा तथा होलिस्टिक चिकित्सा जैसी विभिन्न वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों की मदद से लाइलाज बीमारियों से पीड़ित मरीजों को किसी दवाई की मदद के बगैर स्थायी तौर पर राहत दिलायी जा सकती है। होलिस्टिक चिकित्सा कमर दर्द, गर्दन दर्द, आथ्र्राइटिस, ओस्टियो - आथ्र्राइटिस, गठिया, सियाटिका, कैंसर पीड़ा, सिर दर्द, माइग्रेन, इरीटेबल बाउल सिंड्रोम, साइनुसाइटिस, डिस्क समस्या, पेट दर्द, हर्पिज, न्यूरेल्जिया और डायबेटिक न्यूरोपैथी जैसे किसी भी तरह के दर्द का सफलतापूर्वक निवारण हो सकता है। इसके अलावा हाल के वर्षों में होलिस्टिक चिकित्सा एवं एक्युपंक्चर को कैंसर रोगियों को कष्टों से निजात दिलाने की एक महत्वपूर्ण तरकीब के रूप में माना जाने लगा है। मौजूदा समय में होलिस्टिक चिकित्सा एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित हुआ है।
भारत में होलिस्टिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित सोसायटी फाॅर होलिस्टिक एडवांसमेंट आॅफ मेडिसीन (सोहम) के संस्थापक डा. तुली बताते कि कोई भी दर्द लाइलाज नहीं होता है। दर्द शरीर के किसी भाग में उत्पन्न किसी न किसी व्याधि का संकेत होता है और इसलिये दर्द को स्थायी तौर पर जड़ से दूर करने के लिये उस व्याधि या दर्द के कारण को ठीक करना जरूरी है। होलिस्टिक चिकित्सा मरीज को दर्द से राहत दिलाने के साथ-साथ दर्द के कारण को दूर करती है।
डा. तुली का कहना है कि उन्होंने अपने 25 वर्ष के अनुभव से पाया है कि 90 प्रतिशत से अधिक मरीजों के लिये होलिस्टिक चिकित्सा कारगर है इसलिये किसी भी तरह के दर्द और रोग से ग्रस्त मरीज को जल्द से जल्द होलिस्टिक चिकित्सा की मदद लेनी चाहिये।
डा. तुली का कहना है कि होलिस्टिक चिकित्सा को प्रसव पीड़ा को नियंत्रित करने तथा सामान्य प्रसव सुनिश्चित कराने में काफी कारगर पाया गया है।
डा. तुली बताते हैं कि एक्युपंक्चर एवं होलिस्टिक चिकित्सा की अन्य विधियां दर्द से प्रभावित क्षेत्र की मांसपेशियों को रिलैक्स होने में मदद करती है तथा शरीर में प्राकृतिक दर्दनिवारक तत्व के उत्सर्जन को बढाती है। इसके अलावा यह प्रभावित भाग में रक्त प्रवाह को बढ़ाती तथा वहां की स्नायुओं की कार्यक्षमता में सुधार लाती है। इसके परिणाम स्वरूप होलिस्टिक चिकित्सा दर्द से तत्काल राहत दिलाने के साथ - साथ शरीर की हीलिंग रिस्पौन्स को स्पंदित करती है। कुछ समय तक एक्युपंक्चर एवं होलिस्टिक चिकित्सा नियमित रूप से लेते रहने पर दर्द धीरे - धीरे कम होता है और कुछ समय बाद दर्द इतना कम या नगण्य हो जाता है कि मरीज को सामान्य जीवन में कोई दिक्कत नहीं होती है। होलिस्टिक चिकित्सा के तहत मरीज को दर्द से राहत दिलाने के लिये एक्युपंक्चर के अलावा एक्युपे्रषर, योग एवं ध्यान, रेकी चिकित्सा आदि की भी मदद ली जाती है। एक्युपंक्चर के तहत बाल जैसी पतली सुइयों की मदद से षरीर के उन बिन्दुओं को स्पंदित किया जाता है जो शरीर में ची नामक ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। यह प्रक्रिया कष्टदायक नहीं है।
डा. तुली के अनुसार होलिस्टिक चिकित्सा का मूल सिद्धांत यह है कि पूरे शरीर में एक खास शक्ति (प्राण) का सतत प्रवाह एवं निर्माण होता है। चीनी में इस शक्ति को ‘की’ कहा जाता है। इस शक्ति के तहत दो तरह की ऊर्जा निहित होती है। जब तक शरीर में जीवन शक्ति में समुचित संतुलन एवं समायोजन बना रहता है तब तक आदमी स्वस्थ रहता है। इसके संतुलन में गड़बड़ी होने की परिणति ही बीमारियों के रूप में होती है।

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