An easy formula to increase TRP of Indian Hindi News Channel

टी आर पी बढ़ाने का आसान नुस्खा

-         विनोद विप्लव

 टेलीविजन चैनल खास कर खबरिया चैनलों में लोग टॉप से बॉटम तक हमेशा बदहवाश रहते हैं। टी आर पी बढ़ने-घटने के साथ इनका रक्त संचार घटता-बढ़ता रहता है। हमेशा इसी जुगाड़ में रहते हैं कि क्या दिखायें कि टी आर पी बढ़ जाये। समय-समय पर कुछ ऐसा घटता रहता है जिससे चैनलों को टी आर पी का जुगाड़ हो जाता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि मुंबई में भयानक बारिश या आतंकी हमले, आरूषि कांड और सत्ता के सेमीफाइनल या फाइनल होते रहें। मुंबई पर आतंकी हमले को नाकाम किये जाने और सत्ता के सेमी फाइनल के सम्पन्न हो जाने के बाद चैनलों को टी आर पी का जुगाड करना कठिन होने वाला है, ऐसे में उनके लिये एक बेहद आसान नुस्खा पेश किया जा रहा है।

नोट - यह नुस्‍खा केवल सुझाव मात्र है इस पर अमल करने के कारण उत्‍पन्‍न होने वाले किसी परिणाम की जिम्‍मेदारी लेखक या वेबसाइट की नहीं है।

 

इधर कई दिनों से कोई बच्चा गड्ढे में गिरा नहीं और मैं सोच रहा हूं कि ऐसे भयानक समय में चैनलों को टी आर पी बढ़ाने के लिये तरह-तरह के जतन करने पड़ जाते हैं। जब बच्चा गड्ढे में गिरता है तो काम आसान हो जाता है। बच्चों को तो टेलीविजन वालों पर तरस खाते हुए हर सप्ताह कहीं न कहीं गड्ढे में गिरते रहना चाहिये। केन्द्र सरकार चाहे तो चैनल वालों की सहूलियत एवं उनके फायदे के लिये नियम बना दे कि हर राज्य सरकार को हर महीने कम से कम एक बच्चे के गड्ढे में गिरने को सुनिश्चित करना होगा। जिस राज्य में ज्यादा गड्ढे या बोर खुले छोड़े जायेंगे उसे केन्द्र से विषेश ``खुला गड्ढा`` अनुदान´´ मिलेगा तथा उसे ``सर्वाधिक बच्चा गिरावक राज्य´´ का दर्जा दिया जायेगा। ज्यादा से ज्यादा बोर होल खुला छोड़ने वाले कांट्रैक्टर को ``टी आर पी रत्न´´ की उपाधि दी जायेगी। गड्ढे को खुला छोड़ने की प्रवृति को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार को पद्म पुरस्कारों में ``गड्ढा विभूषण´´, ``गड्ढा  भूषण´ और ``गड्ढा श्री´´ जैसे पुरस्कारों को भी शामिल करना चाहिये। अब जब तक सरकार इस दिशा में कुछ नहीं करती तब तक चैनल वालों को चाहिये कि वे खुद प्रयत्न करें और इस तरह की कुछ पहल करे। पिछले दिनों एक खबरिया चैनल में काम करने वाले मेरे एक दोस्त बता रहे थे कि आजकल बच्चे टेलीविजन चैनलों के ``ओ बी वैन´´ को देखकर ही भाग खड़े होते हैं कि पता नहीं कब चैनल वाले उसे पकड़ कर किसी भी गड्ढे में डाल दें और इसके बाद वहीं से सीधा प्रसारण शुरू करें दें - ``बच्चा फिर गड्ढे में, सिर्फ ``परसों तक´´ चैनल पर।´´  गड्ढे में दो दिन तक भूखा-प्यास वह पड़ा रहे और टी आर पी चैनल की बढ़े। ऐसे में कोई बच्चा क्यों गड्ढे में गिरे। इन चैनल वालों से यह तक नहीं होता कि किसी बच्‍चे को बिस्किट, चाकलेट, बर्गर, जूस, कोल्ड ड्रिंक्स आदि के पैकेट पकडायें और कहें कि बच्चा चल गड्ढे में उतर जा। जब तक इन सब आइटमों को खा-पीकर खत्म करेगा तब तक हम अपनी टी आर पी बढ़ा लेंगे और दो चार घंटे में दमकल और सेना वाले आकर तुम्हें निकाल लेंगे। बाद में ईनाम भी मिलेंगे और चैनलों पर इंटरव्यू आयेंगे, स्वयं सेवी संगठनों की गोरी मैडमें और चिल्‍ला-चिल्‍ला कर नाक में दम कर देने वाली टेलीविजन चैनलों की खूबसूरत बालायें गोद में उठायेंगी और बाइट लेंगी - सो अलग। लेकिन चैनल वाले इतना भी नहीं करना चाहते। अब सोचिये किसी बच्चे के अपने आप किसी बोर या गड्ढे में गिरने के लिये कितना बड़ा संयोग बैठना चाहिये। बेमेल शादी कराने के लिये जन्मपत्री बनाने में किसी पंडित जी को जो मशक्कत करनी पड़ती है उससे कई गुना अधिक मशक्कत ब्रह्मा जी को किसी बच्चे को बोर या गड्ढे में गिराने के लिये करनी पडती है। चलिये यह तो मान लेते हैं कि काट्रैक्‍टर बोर को खुला छोड़ देंगे क्योंकि यह तो उनका धर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन इसके आगे कितना बड़ा संयोग चाहिये क्योंकि केवल बोर या गड्ढे के खुला छोड़ देने भर से काम नहीं बनता। काम तब बनता है जब उसमें कोई बच्चा गिरे और चैनल वालों को इसकी भनक लगे। उस बोर या गड्ढे के आसपास बिल्कुल बेपरवाह परिवारों और माता-पिताओं का भी होना जरूरी है जिन्हें इस बात कि फिकर ही नहीं रहती है कि उनका बच्चा खेलते-खेलते कहां निकल गया और कहां गिर गया। इसके अलावा वैसे परिवारों में ऐसे बच्चे का भी होना जरूरी है जो खेलने के लिये कहीं और नहीं उस बोर के पास ही जाये और सीधे उसमें गिर जाये।

अब इतने सारे संयोग के लिये इंतजार करने से अच्छा है कि चैनल वाले अपने स्टूडियो में ही कोई बोर या गड्ढा खोद लें और हर सप्ताह किसी न किसी बच्चे को गिरने के लिये आमंत्रित करें। इसके अलावा स्टूडियो में लाइव डिस्कशन के लिये बच्चे के मां-बाप, पूर्व में गड्ढे में गिरने वाले किसी बच्चे, उसके माता-पिता, बोर को खुला छोड़ देने में माहिर कांट्रैक्टर आदि को पहले से बुला कर रखें। इससे ओ वी वैन को कहीं मूव नहीं करना पड़ेगा। सब कुछ स्टूडियो में ही हो जायेगा। बोर इस तरह की हो कि बच्चा एक तरफ से बोर में घूसकर दूसरी तरफ से निकल सके। साथ ही बोर में बच्चे के बैठने, खाने-पीने, सोने आदि की व्यवस्था होनी चाहिये। एसा होने से बच्चे बोर में ज्यादा से ज्यादा दिन रहेंगे और ज्यादा से ज्यादा समय तक टी आर पी बटोरी जा सकती है। बोर से बच्चे को निकालने के नाटक को किसी कंपनी से प्रायोजित कराया जा सकता है। इसमें कंपनी का मुफ्त प्रचार होगा और वाहवाही भी खूब मिलेगी। यह नुस्खा सुपरहिट हो सकता है। अगर इस नुस्खे को आजमाया जाये तो सबका फायदा हो सकता है - चैनल वालों को, बच्चे और उसके मां-बाप को, प्रायोजक कंपनियों को और ``सास-बहू´´ टाइप के दषZकों को जो अपने चहते धारावाहिकों के बंद हो जाने के कारण डिप्रेशन में चले गये हैं। सरकार और नेताओं को तो सबसे ज्यादा फायदा होगा क्योंकि आम लोग मंहगाई और अन्य समस्याओं को भूल कर बच्चों को गड्ढे से निकाले जाने की चिंता में ही डूबे रहेंगे और सरकार, मंत्री और नेता देश को गड्ढे में गिराने के मिशन को तसल्ली के साथ अंजाम दे सकेंगे।

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