मोहम्‍मद रफी की याद में - वो भी क्‍या दिन थे

“Rafi’s day” - The Golden Voice, a gift of God to the human race….

This article is written by Mr. K.S Ramachandran (Chandan)

Mohammad Rafi, means the golden voice that the human race will never ever get to hear again, in the lifetime to come. But we are so much blessed to listen to his multi-various renditions - so soothing, human, emotional with that magical, mesmerizing vocal delivery, even after 29 years of his demise.

It is often said that Mohammad Rafi sang with a full force, delivering not only his golden voice but the much needed emotion, depth, feel, shruthi laya, range and a totally satisfying rendition, over and beyond the expectation of the music directors. He sang from his chest, entire body and soul and not merely from his throat. When there was song in a movie which meant challenge, the music directors often, invariably, fell back on Rafi Saab. One such song, which comes to my mind, is Sadpe Heer from Mera Naam Joker. Rafi Saab sang this song for Raj Kapoor in this movie, when most of the songs in the movie were obviously sung by Mukesh Saab for Raj Kapoor. There are many such songs of Rafi Saab and I am not here to list down the songs, which would only mean listing down the countless stars in the sky!

There are many singers, including the highly accomplished living (and even past) legends, trying to imitate his style and renditions, but no one is still able to conquer the unexplainable blend of the voice qualities and more importantly the “delivery” that Rafi Saab ensured in his renditions. It would not be an exaggeration, if we say that there would be no one, in times to come, to even, in the least, match his quality of singing.

K.S.Ramchandran, the author of this article

K.S.Ramchandran, the author of this article

It is also often said that the goodness of a human being is shown in their act and behaviour and in our Rafi Saab’s case, it was shown, in no uncertain terms, in his singing. A singer par excellence and no one, I am sure, can explain, in its entirety, the goodness of the human being called “Rafi Saab”!! He was truly a “Son of God”.

After almost 29 years of his demise, our hunger and desire to unearth his unique renditions, maintains a rapid pace, year after year and this momentum and growing speed would never end, for a lifetime….

I kneel before GOD to salute this greatest legend the world would never see again and also pray the Almighty to give his soul the musical rest in peace for the commendable service that Rafi Saab has served the human race with his magical voice, during his lifetime….

I hereby offer my shraddhanjali to the legend, by singing the following songs on this day, the 31st July 2009:

Kaise Kate Ghi Zindagi Tere Begair (2)
Paaoonga Har She Me Kami Tere Begare, Tere Begair
Kaise Kate Ghi Zindagi Tere Begair Tere Begair

Phuul khileinto yuun lage phuul nahin ye daag hain - 2
taare falak pe yuun lagein jaise bujhe chiraag hain
aag lagaae chaandani tere bagair tere bagair
Kaise Kate Ghi Zindagi Tere Begair Tere Begare

Chand Ghata Me Chup Gaya, Sara Jahaan Udaasu Hai (2)
Kehetihai Dilki Dadkane Tu Kahi Aas Paas Hai
Aanke Tadap Raha Hai Jhi, Tere Bagair
Paaoonga Har She Me Kami Tere Begare, Tere Bagaire
Kaise Kate Ghi Zindagi Tere Begair Tere Begair

Beethe Dino Ki Yaad Saatati Hai Aaj Bhi - 2
Kya Woh Zamaane Phir Kabi Wapas Na Aayenge
Kya Hum Tamaam Umrubar Yuheen Rohe Jaayenge
Beethe Dino Ki Yaad Saatati Hai Aaj Bhi

Jab Isqh Par bahaar Ki, Woh Din Kidar Gaye
Dil Tootne Se Pehle Hi, Hum Kue Na Margaye
Ab Kya Raha Hamare Liye, Is Dayar me
Aansoon Bi Khatm Hogaye Ro, Roke Pyarme
Aankon Se Dil Ka Khoon Kahan, Tak Bahanyege

Kya Hum Tamaam Umrubar Yuheen Rohe Jaayenge
Beethe Dino Ki Yaad Saatati Hai Aaj Bhi - 2
Kya Woh Zamaane Phir Kabi Wapas Na Aayenge
Kya Hum Tamaam Umrubar Yuheen Rohe Jaayenge
Beethe Dino Ki Yaad Saatati Hai Aaj Bhi

Nazdeek Tumse Jane Wafa Hum Hai Aaj Bhi
Hai Sirf, Darmeyaan Me, Deeware Zindagi
Yeh Parda Utgaya to, Ghame Isqh Ki Kasm
Dil To Yakeen Hai Ke Tume Paahee Lenge Hum
Phir Apni Dastaan Ko Haqueet Banayenge

Beethe Dino Ki Yaad Saatati Hai Aaj Bhi - 2
Kya Woh Zamaane Phir Kabi Wapas Na Aayenge
Kya Hum Tamaam Umrubar Yuheen Rohe Jaayenge
Beethe Dino Ki Yaad Saatati Hai Aaj Bhi

साभार - www.mohdrafi.com

दिलीप कुमार के लेबल को कोई छू नहीं सकता - राजकपूर


सन 1982 की सर्दी की एक रात। पाली हिल के एक बंगले में आधी रात के बाद टेलीफोन की घंटी घनघना उठी। उनींदी की अवस्था में एक व्यक्ति ने रिसीवर उठाया। दूसरी ओर से आवाज आई, मैं राज। अभी तेरी फिल्म शक्ति देखी, लाले.. बस हो गया फैसला कि इस देश में केवल एक ही दिलीप कुमार है। उसके लेवॅल को कोई छू नहीं सकता!

राज का मतलब था राज कपूर। हिंदी फिल्मों के मशहूर ऐक्टर, डायरेक्टर और फिल्म-मेकर राज कपूर..। हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े शो मैन आर के प्रशंसा कर रहे थे और फोन रिसीव करने वाला व्यक्ति और कोई नहीं, खुद अभिनय के अजीम शहंशाह दिलीप कुमार थे। कहते हैं, फिल्म प्रेम रोग की शूटिंग के दौरान एक दृश्य में ऋषि कपूर के अभिनय से राज कपूर संतुष्ट नहीं हो रहे थे। ऋषि भी बार-बार की रिटेक से थक गए थे। दरअसल, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पिता को कैसे संतुष्ट करें! उधर राज कपूर भी बेचैन थे। आखिरकार कैमरे के पीछे से चीखते हुए उन्होंने कहा, चिंटू, मुझे इस दृश्य में यूसुफ चाहिए। एक बार तो चिंटू की समझ में नहीं आया। उन्होंने सवालिया निगाहों से पिता की ओर देखा, तो राज कपूर ने समझाया, बेटा, इस दृश्य में यूसुफ साहब जैसा एक्सप्रेशन चाहिए।

अभिनय जगत में दिलीप कुमार-राज कपूर और देव आनंद की त्रयी पॉपुलर थी। इनमें से एक देव आनंद ने 1994 में कहा था, दिलीप कुमार ने ऐक्टिंग की ऊंचाइयां छू ली हैं। देखें, तो ये तीनों अभिनेता एक-दूसरे की इज्जत और कद्र करना जानते थे और मौका मिलने पर दूसरे की तारीफ करने से नहीं चूकते थे। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने दिलीप साहब को दादा साहेब फालके पुरस्कार मिलने के समय लिखा था, उत्तम नहीं, सर्वोत्तम हैं दिलीप कुमार। बिग बी हमेशा उनकी तारीफ करते हैं। एक बार उन्होंने यहां तक कहा, अगर कोई ऐक्टर यह कह रहा है कि वह दिलीप कुमार से प्रभावित नहीं है, तो वह सफेद झूठ बोल रहा है। अमिताभ बच्चन आमतौर पर रिटेक नहीं देते थे, लेकिन शक्ति के सेट पर कई रिटेक हुए। शूटिंग के आरंभ में शूट किए गए वे दृश्य फिल्म के क्लाइमेक्स में इस्तेमाल किए गए थे। उस दृश्य में दिलीप कुमार भाग रहे अमिताभ बच्चन का पीछा करते हैं। दृश्य में अमिताभ बच्चन को पलटकर दिलीप कुमार की आंखों में देखना था और फिर दौड़ना था। अमिताभ बच्चन ने इस बारे में लिखा है, दिलीप साहब की आंखों में देखने के बाद मैं अगला ऐक्शन भूल गया और फिर अनेक रिटेक हुए। दिलीप साहब के अभिनय की सबसे बड़ी खूबी है कि वे दृश्य में मौजूद सभी कलाकारों से रिश्ता बनाते हैं और रिटेक भी हो सकता है, इसलिए पुरानी ऊर्जा तब तक बरकरार रखते हैं, जब तक सीन ओके नहीं हो जाता। सामने वाले ऐक्टर की मदद भी करते हैं। सन 2005 में कमल हासन ने स्वीकार किया था, मैं अपने आदर्श दिलीप कुमार को बताना चाहता हूं कि वे महान ऐक्टर हैं। मैंने बहुत पहले उनके पास गंगा जमुना का पोस्टर ऑटोग्राफ के लिए भेजा था। राज कुमार और दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म सौदागर फिल्मी दर्शकों को जरूर याद होगी। इसमें सुभाष घई ने जब दिलीप कुमार के साथ राज कुमार को लेने की बात सोची, तो उन्हें लोगों ने मना किया। उन्हें सावधान किया गया कि फिल्म कभी पूरी नहीं हो पाएगी! घई ने तब राज कुमार से पूछा, क्या उन्हें दिलीप कुमार के साथ काम करने में कोई दिक्कत या परेशानी है? राज कुमार ने पलटकर पूछा था, कैसी परेशानी, जॉनी..? उनसे कैसी दिक्कत, वे तो मेरे प्रेरणा स्रोत हैं।

आज के स्टार आमिर खान भी दिलीप साहब की तारीफ करते नहीं थकते। ठीक है कि दिलीप कुमार भी मनुष्य हैं और बाकी मनुष्यों की तरह वे भी नश्वर हैं, लेकिन ऐक्टर दिलीप कुमार तो अमर हैं। बरस, दशक और सदियों बाद भी वे हर नए ऐक्टर के लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे और नई प्रतिभाएं उनकी फिल्में देखकर सीखती रहेंगी।

साभार - एक वेबसाइट से साभार

मोहम्‍मद रफी की अंतिम यात्रा

मोहम्‍मद रफी का दुनिया में आना और इस नश्‍वर दुनिया से उनका रूखसत होना उनके चाहने वाले लाखों करोडों लोगों के लिये इतिहास की सबसे बडी घटना थी और हमेशा के लिये रहेगी। कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है, लेकिन मोहम्‍मद रफी के मामले में यह कथन असत्‍य साबित होता है। महात्‍मा गांधी के बाद मोहम्‍मद रफी ही एकमात्र ऐसे शख्‍स थे जिनकी शवयात्रा में इतना भारी जनशैलाब देखने को मिला। मोहम्‍मद रफी की शव यात्रा जिस समय निकाली जा रही थी, मुंबई में भयानक बारिश हो रही थी मानो आकाश भी आंसू बहा रहा हो। इतनी भारी बारिश में भी मोहम्‍मद रफी के इंतकाल की खबर आग की तरह फैली और जिसने भी सुना वह बांद्रा की मस्ज्दि की तरफ दौड पडा। यहां पेश वीडियो रफी साहब की शव यात्रा में जमा अभूतपूर्व जन शैलाब का सबूत है। ऐसा ही होता है जननायक और जनगायक का जाना। मोहम्‍मद रफी के बाद फिर ऐसा जनशैलाब और कब उमडा। मुझे तो याद नहीं आता किसी को पता हो तो बतायें। यहां पेश है मोहम्‍मद रफी की अंतिम यात्रा का वर्णन महान संगीतकार नौशाद के शब्‍दों में।

रमजान में मोहम्‍मद रफी का इंतेकाल हुआ था और रमजान में भी अलविदा के दिन। बांद्रा की बडी मस्जिद में उनकी नमाजे जनाजा हुई थी। पूरा ट्रैफिक्‍ जाम था। क्‍या हिंदू, क्‍या सिख, क्‍या ईसाई, हर कौम सडकों पर आ गई थी।

नमाज के पीछे जो लोग नमाज में शरीक थे उनमें राज कपूर, राजेन्‍द्र कुमार, सुनील दत्‍त के अलावा इंडस्‍ट्री के तमाम लोग मौजूद थे। हर मजहब के लोगों ने उनको कंधा दिया। कब्रिस्‍तान की दीवारों पर शीशे लगे हुये थे। लोग उस पर चढ गये थे। उनके हाथों से खून बह रहा था लेकिन रफी के अंतिम दर्शन के लिये वे उस दीवार पर चढ-चढ कर अंदर फांद रहे थे। मैंने यह मंजर भी अपनी आंखों से देखा था कि लोग उनकी कब्र से मिट.टी शीशी में भरकर ले गए थे कि भई हम इसे अपने घर में रखेंगे और इसकी पूजा करेंगे। ’’ - पेंग्विन बुक्‍स से प्रकाशित चौधरी जिया इमाम लिखित नौशाद की जीवनी नौशाद जर्रा जो आफताब बना से साभार।

- विनोद विप्‍लव

सत्यवादी क्रांति

- विनोद विप्लव

भारत दिनों एक महान क्रांति के दौर से गुजर रहा है। वैसे तो हमारे देश और दुनिया में कई क्रांतियां हुयी हैं। मसलन औद्योगिक क्रांति, साम्यवादी क्रांति, समाजवादी क्रांति, पूंजीवादी क्रांति, और श्वेत एवं हरित जैसी रंगवादी क्रांतियां। लेकिन भारत में आज जिस क्रांति की लहर चल रही है उसकी तुलना में बाकी क्रांतियंा पसांग भर भी नहीं हैं। इसी महान क्रांति का असर है कि आज हर आदमी सच बोलने के लिये छटपटा रहा है। ऐसा लग रहा है कि मानो उन्होंने अगर सच नहीं बोला तो उनका दम घुट जायेगा, देश का बंटाधार हो जायेगा, धरती फट जायेगी और दुनिया रसातल में चली जायेगी। यही कारण है हर भारतीय सच बोलने का एक मौका देने की गुजारिष कर रहा है। लोग दिन-रात फोन करके गुहार लगा रहे हैं, ‘‘प्लीज, एक बार मुझे भी सच बोलने के लिये बुला लो।’’ लोग फोन करने के लिये इस कदर उमड़ पड़े हैं कि फोन लाइनें ठप्प पड़ गयी हंै। लोग रात में जाग-जाग कर फोन कर रहे हैं। सच बोलने के प्रति लोगों में ऐसा भयानक जज्बा इतिहास में शायद ही कभी देखा गया। वैसे भी हमारे देश में सच बोलने की परम्परा नहीं रही है। हमारे इतिहास में सच बोलने वाले केवल एक ही व्यक्ति का जिक्र आता है - राजा हरिश्रचन्द्र का। लेकिन उनके बारे में भी ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता कि उन्होंने कभी अपनी निजी जिंदगी के बारे में सच बोला हो। उन्होंने कभी भी खुलासा नहीं किया कि उनके अपनी पत्नी के अलावा कितनी महिलाओं से संबंध थे, उन्होंने अपनी पुत्री से कम उम्र की कितनी लड़कियों से संबंध बनाये थे, उन्होंने पांच सितारा सरायों से कितनी सफेद या अन्य रंगों की चादरें चुरायी थी। लेकिन इसके वाबजूद उन्हें सत्यवादी का खिताब दे दिया गया जो दरअसल इस बात का सबूत है कि उनके जमाने में सच बोलने वालों का कैसा भयानक अकाल था। वाकई हमारा देष सच बोलने के मामले में पूरी तरह कंगाल रहा है। यहां सच उगलवाने के लिये हमारी बहादुर पुलिस को लोगों को बर्फ की सिल्लियों पर लिटाना पड़ता रहा है और मार-मार कर उनकी चमड़ी उधेड़नी पड़ती रही है। यहां गीता और ईश्वर से लेकर मां-बहन की कसमें खाकर, सत्यनिष्ठा की शपथ लेकर और अदालत में एफिडेविट देकर झूठ बोले जाते रहे हैं। लेकिन अब झूठ का यह अंधकार युग गुजर चुका है। अब सच और सत्यवादियों का बोलवाला हो चुका है। आज लोग वैसे-वैसे सच बोल रहे हैं जिसके कारण उनकी जिंदगी नर्क बन सकती हैं, उनका दाम्पत्य जीवन नर्क बन सकता है, समाज में उनकी इज्जत मिट्टी में मिल सकती है। लेकिन इन्हें इन सबकी परवाह नहीं है, उन्हें तो सच बोलना है - इसकी कीमत चाहे जो भी चुकानी पड़े या जो भी कीमत पानी पड़े। ऐसे सत्यवादियों को शत्-शत् नमन। आश्चर्य तो यह है इतनी महान क्रांति एक टेलीविजन कार्यक्रम ने कर दी। लेकिन कुछ समाज विरोधियों की साजिष तो देखिये। वे इस क्रांति का सूत्रपात करने वाले कार्यक्रम पर ही प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। यह तो हम सबका सौभाग्य है कि हमें बहुत ही समझदार सरकार मिली है जिसे पता है कि ऐसी मांग करने वाले लोगों की क्या मंशा है। सरकार जानती है कि ऐसे लोग देश को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते। वे जनता को दाल, रोटी, पानी, बिजली, पानी, पेट्रोल, रसोई गैस और सड़क जैसे पुरातन और बेकार मुद्दों में ही उलझाये रखना चाहते हैं, लोगों को पिछड़ा बनाये रखना चाहते हैं। आज जब लोग ऐसे टेलीविजन कार्यक्रमों की बदौलत सच बोल रहे हैं, जमीन से उपर उठकर समलैंगिकता, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स, राखी सावंत, मल्लिका शेरावत, माइकल जैक्सन, सरकोजी और बू्रनी के बीच के संबंध आदि उच्च स्तरीय मुद्दों के बारे में सोच रहे हैं तो देश और समाज को पीछे ले जाने वाले कुछ मुट्ठी भर लोगों को यह पच नहीं पा रहा है। सरकार को चाहिये कि देश में सच बोलने की क्रांति पैदा करने वाले एंकर को भारत रत्न से सम्मानित करे। उसे ऐसी योजनायें बनानी चाहिये ताकि देश के हर टेलीजिवन चैनल ऐसे ही बल्कि इससे भी आगे के कार्यक्रम प्रसारित करें ताकि यह क्रांति देश के दूरदराज के इलाकों में भी फैले। मुझे तो पूरा विश्वास है कि ऐसा जरूर होगा। सत्य की विजय होगी। कहा भी तो गया है - सत्यमेव जयते।

यह व्यंग्य नवभारत टाईम्स में ०७-०८-२००९ को प्रकाशित हो चुका है