मधुबाला: दर्द का सफर - the first biography of Madhubala in Hindi


मधुबाला: दर्द का सफर
हिन्दी में मधुबाला की पहली जीवनी)
भारतीय सिने पटल की अप्रतिम सौंदर्य की मल्लिका मधुबाला को गुजरे कई दशक बीत चुके हैं इसके बावजूद अपने सौंदर्य और अपने अभिनय की बदौलत वह आज तक भारतीय सिनेमा की आइकन बनी हुर्ह हंै। मधुबाला के समय की तुलना में आज का समाज बहुत बदल गया है लेकिन आज भी मधुबाला की तरह बनना और दिखना ज्यादातर लड़कियों का सपना रहता है। अत्यंत निर्धन परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी मधुबाला ने लोकप्रियता का जो शिखर हासिल किया वह विलक्षण प्रतीत होता है। लेकिन इतना होेने के बावजूद भी मधुबाला के जीवन के ज्यादातर पहलुओं से लोग अनजान हैं।
मधुबाला की जिंदगी एवं फिल्मों पर आधारित पुस्तक में मधुबाला से जुड़े अनेक अनछुए पहलुओं को टटोलने की कोशिश की गई है। मधुबाला की कहानी गर्दिश से उठकर सितारों तक पहुंचने की कहानी मात्रा नहीं है बल्कि कठोर जीवन संघर्ष की एक मुकम्मल गाथा है जिसे पढ़ने पर पता चलता है कि जो कामयाबी और शोहरत दूर से अत्यंत सुहानी लगती है उसे पाने के लिए कितना कुछ खोना और सहना पड़ता है। मधुबाला की कहानी को पूरे ब्यौरे के साथ जानना इसलिए जरूरी है ताकि यह समझा जा सके कि कामयाबी का सफर जितना सुखद दिखता है दरअसल वह उतना सुखद नहीं होता बल्कि अक्सर उसे कांटे भरे रास्तों पर चल कर पूरा करना होता है।
मधुबाला का जीवन बहुत छोटा रहा। महज 36 साल की जिस उम्र में उन्होंने मौत को गले लगाया उस उम्र में लोग अपने करियर की कायदे से शुरूआत करते हैं लेकिन उन्होंने इस उम्र में ही सबकुछ पा लिया - बेपनाह शोहरत और समृद्धि। लेकिन इसके बाद भी उन्हें वे चीजें नहीं मिलीं जिनके लिए वह जीवन भर तड़पती रहीं। मधुबाला की कहानी जीवन के इस कड़वे सच को समझने के लिए भी जरूरी है। मधुबाला की कहानी एक और तरह से भी महत्वपूर्ण है। बाल कलाकार के रूप में जब मधुबाला का पदार्पण हुआ और 1942 में फिल्म बसंत में जब वह एक छोटी सी भूमिका में अवतरित हुईं तब भारतीय सिनेमा विकास के आरंभिक चरण में था और जब 1971 में उनकी अंतिम फिल्म ज्वाला रिलीज हुई तब भारतीय सिनेमा का स्वर्ण काल उतार पर था। मधुबाला भारतीय सिनेमा के सबसे सुनहरे दौर की गवाह रहीं और इस तरह मधुबाला के जीवन से गुजरने का मतलब भारतीय सिनेमा के सबसे सुनहरे दौर से गुजरना है। दुलर्भ तस्बीरों एवं जानकारियों से सुसज्जित यह पुस्तक न केवल मधुबाला के जीवन के सच को बल्कि उनके समय के सिनेमा और समाज को समझने के लिये उपयोगी है। 200 से अधिक पष्श्ठों वाली यह पुस्तक पेपरबैक संस्करण में जल्द ही प्रकाषित होने वाली है।
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