विपक्षी दलों की बौखलाहट का सुविचारित प्रतिफल है खगड़िया की घटना

विपक्षी दलों की बौखलाहट का सुविचारित प्रतिफल है खगड़िया की घटना
-अरुण कुमार मयंक-
पटना.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सूबे में अधिकार यात्रा कर रहे हैं. यह मुख्यमंत्री द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मुहिम है. इस के दौरान खगड़िया में पिछले दिनों घटित घटना सुविचारित है.इस में अवरोध पैदा करने का कुत्सित प्रयास है. बिहार के लोग सूबे के सवाल पर जाति-धर्म से ऊपर उठ रहे हैं. सूबे के लोग नीतीश की मुहिम को ताकत दे रहे हैं. विपक्षी दलों की परेशानी लगातार बढ़ रही है. इन दलों के राजनेताओं को लग रहा है कि उनके हाथों के तोते उड़ चुके हैं. यही कारण है कि वे बुरी तरह बौखला उठे हैं. विपक्षी दलों की इसी परेशानी और राजनेताओं की बौखलाहट का सुविचारित प्रतिफल है खगड़िया की घटना.



विरोधी दल मुख्यमंत्री पर हुए उक्त कातिलाने हमले को जनता का आक्रोश के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. वे पूरे बिहारी समाज को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन उन राजनेताओं को शायद यह पता नहीं है कि इस आपराधिक घटना को लेकर खगड़िया की जनता में कितना आक्रोश पनप रहा है. यदि जन आक्रोश रहता,तो वहां की अधिकार यात्रा में नीतीश को सुनने के लिए भारी भीड़ नहीं जुटती. विरोधी दलों ने जिस परम्परा की शुरुआत कराई है - यह भारतीय लोकतंत्र के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है, इसका आकलन उन्होंने नहीं किया है. लोकतंत्र में विरोध की परम्परा अहिंसात्मक रही है, लेकिन खगड़िया का विरोध हिंसात्मक और आपराधिक घटना है. ईंट,पत्थर,लाठी,पैना से आक्रमण करना क्या दर्शाता है? आगजनी और सरकारी सम्पति में आग लगाना किस बात का द्योतक है. इस तरह की घटनाओं को जनाक्रोश कहने वाले दल और उनके नेता जरा अपना गिरेबान में झांक कर देखें - वे किस व्यक्तित्व के स्वामी हैं. हालाँकि बिहार के लोग इन राजनेताओं के चरित्र से भली-भांति परिचित हैं. यहाँ के लोगों ने उनको बहुत ही करीब से देखा है. बिहार को गर्त में ले जाने वाले ये दल और इनके नेता लाख कुकर्म कर लें, अब दुबारा बिहार की जनता इन्हें चारा डालने वाली नहीं है !
लाख विरोध हो पर लोकतंत्र में आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति खगड़िया की घटना का कभी समर्थन नहीं कर सकता है. कोई सजग और जिम्मेवार राजनीतिक दल भी ऎसी आपराधिक घटना का समर्थन नहीं कर सकता है. पर सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि बिहार ही एक ऐसा प्रदेश है जहाँ प्रतिपक्षी दल इस तरह की घटना का समर्थन कर रहे हैं और इस आपराधिक कृत्य को जनाक्रोश बता रहे हैं. राजद के एक नेता जो कभी सन १९७४ के आन्दोलन में इंदिरा ब्रिगेड में थे और जयप्रकाश नारायण पर कातिलाना हमला किया था. वे आज मुखर होकर बिहार में सन १९७४ जैसी हालत बता रहे हैं! प्रतिपक्ष में अब्दुल बारी सिद्दीकी को एक सुलझा हुआ व्यक्तित्व व जिम्मेवार नेता माना जाता रहा है.पर उनका बयान भी इंदिरा ब्रिगेड में रहे नेता के सुर में सुर से मिलते देख तो काफी पीड़ा होती है. कम से कम बिहार के प्रगतिकामी लोग उनसे ऎसी उम्मीद नहीं रखते थे. हो सकता है कि ये उनकी अंतरात्मा की आवाज़ नहीं हो,बल्कि उनकी कोई राजनैतिक लाचारी हो! पर सिद्दीकी को हमेशा एक बात याद रखना चाहिए कि वे जिस दल और नेता के साथ हैं उनकी कारगुजारियां सबों को पता है. इनके आक्रामक तेवर और अराजक कार्रवाई को सब लोग जानते हैं. १९९४ में नीतीश कुमार एवं जार्ज फर्नान्डीज़ सहित कुल १४ सांसद जनता दल छोड़कर अलग हो गए थे और जनता दल (जार्ज) का गठन किया था. इसका संक्षिप्त नाम जी-१४ था.इसी क्रम में जार्ज अपने संसदीय छेत्र मुजफ्फरपुर जा रहे थे,तो रास्ते में उनपर कातिलाना हमला किसने किया था और कौन करवाया था? शायद सिद्दीकी को यह सब स्मरण होगा और नहीं है तो करना चाहिए. राजनीति में इस तरह के आपराधिक कृत्य की कोई जगह नहीं है. यह जनतंत्र के लिए काफी पीड़ादायक है. राजनीति में इस तरह के आपराधिक कृत्य के कारण ही निहोरा प्रसाद यादव पार्टी छोड़कर नीतीश का साथ दिया था. आपराधिक आक्रमण की राजनीति की शुरुआत के जन्मदाता की कारगुजारियों का सिद्दीकी समर्थन करें-किसी को भी ऎसी उम्मीद नहीं थी और न है!
कल तक नियोजित शिक्षकों के खिलाफ आग उगलने वाले दल एव उसके नेता आज घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं. इन शिक्षकों के चलते बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है. ए बी सी डी नहीं जानते ,जाली प्रमाणपत्र पर नियोजन हुआ है, उनकी सरकार में आने के बाद इन शिक्षकों को हटा दिया जायेगा. इन दलों के राजनेता उक्त बातें कहकर नियोजित शिक्षकों की मशखरी उड़ाया करते थे. आज वही दल और उनके नेता इन शिक्षकों को निपुण मान रहे हैं. सत्ता में आने की लालसा के चलते वे यह कह रहे हैं कि अगर हम सरकार में आयेंगे, तो इन शिक्षकों की नियुक्ति को स्थाई कर देंगे. गिरगिट भी इस तरह रंग नहीं बदलता है, जिस तरह ये सत्ता प्राप्त करने की व्यग्रता में बदल रहे हैं !
जैसे-जैसे लोक सभा का चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद राजनीतिक रूप से काफी परेशान नजर आ रहे हैं.उनका आत्म बिश्वास टूटता दिखाई पड़ रहा है.वे भूतकाल में विचरण करने लगते हैं. इन्हें लगने लगता है कि पटना बिश्वविद्यालय ने ही मुझको राजनीतिक जमीन दिया, जिसके आधार पर राजनीति के शीर्ष पर पहुँच पाए. अब इसी रास्ते पर अपने पुत्र को चलने की सलाह दे रहे हैं, पर शायद यह भूल गए हैं कि वह स्वयं गरीब के बेटा थे. पर उनके पुत्र के साथ कुछ भी ऐसा नहीं है. इस सूबे में उनके पुत्र को ही यह गौरव प्राप्त है कि जिसके माता-पिता दोनों ही राज्य के मुख्यमंत्री रहे हों.
बहुत सारे लोग कहते हैं कि जनता सब भूल जाती है, पर बिहार में जनता भूल नहीं पा रही है. ऐसा हो सकता है कि सरकार द्वारा नीति-निर्धारण में कोई गलती हो तो जनता भूल भी सकती है, माफ़ कर सकती है पर जान-बूझ कर ही ऐसी नीतियाँ बनायी जाये या फिर अपनायी जाय, जिससे लोग असुरक्षित रहें. समाज में अराजक स्थिति कायम हो जाय, सभ्य लोग घर में बंद रहें, अपराधी सडकों- दुकानों पर नंगा नाच करें, कानून का शासन जाता रहे और अपराधियों की हुकूमत कायम हो जाय - यह जंगल राज नहीं तो और क्या है! ऐसे भूतकाल को लोग चाह कर भी नहीं भूल पाते; लाख पासा फेंका जाये, जनता उनकी बिसात में फंसने वाली नहीं है !

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