शन्नो और आकृति के मामले में सामने आया खबरिया चैनलों का वर्गीय चरित्र

मीडिया चरित
- विनोद विप्लव
खबरों के कवरेज के मामले में खबरिया चैनल भी अमीरी-गरीबी और हिन्दी-अंग्रेजी के बीच किस तरह से भयानक पैमाने पर भेदभाव करते हैं इसका एक नमूना पिछले दिनों शन्नो और आकृति भाटिया की मौत के मामले में देखने का मिला।
मीडिया अध्ययन केन्द्र (सीएमएस) की ओर से किये गये अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि देश के प्रमुख पांच खबरिया चैनलों ने अपने प्राइम टाइम पर दिल्ली नगर निगम के एक स्कूल में पढने वाली गरीब घर की शन्नो की मौत से संबंधित खबरों एवं कार्यक्रमों को जितना समय दिया उससे कम कम से दो गुना से अधिक समय दिल्ली के एक मंहगे पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाली अमीर घर की छात्रा आकृति भाटिया की मौत के मामले में दिया। अंग्रेजी चैनल एनडीटीवी 24 गुणा 7 को आम तौर पर संतुलित एवं पूर्वग्रहरहित माना जाता है लेकिन इस चैनल के अलावा अंगे्रजी के दो अन्य प्रमुख चैनलों पर यह भेदभाव करीब-करीब आठ गुना था।
सीएमएस के मीडिया लैब के प्रमुख प्रभाकर ने बताया कि इस अध्ययन में एनडीटीवी 24 गुणा 7 के अलावा सीएनएन आईबीएन, आजतक, स्टार न्यूज और जी न्यूज को शामिल किया गया। इस अध्ययन के अनुसार आकृति और शन्नो की खबरों के कवरेज के मामले में सबसे कम भेदभाव स्टार न्यूज और जी न्यूज पर देखने को मिला। स्टार न्यूज ने अपने प्राइम टाइम पर शन्नो को आठ मिनट 20 सेकेड का समय दिया जबकि आकृति को 14 मिनट का समय दिया जबकि जी न्यूज ने शन्नो को 39 मिनट और आकृति को 58 मिनट का समय दिया। जी न्यूज ही एकमात्र ऐसा चैनल रहा जिसने इस मामले में काफी संतुलित कवरेज दिखाया। इस चैनल नेे शन्नो की मौत को लेकर दो विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित किये। हिन्दी चैनलों की तुलना में अंग्रेजी चैनलों ने शन्नो और आकृति के मामले में अधिक भेदभाव दिखाया।
इस अध्ययन के अनुसार शाम सात बजे से रात ग्यारह बजे के बीच के प्राइम टाइम के दौरान सीएनएन-आईबीएन ने शन्नो के मामले पर आठ मिनट 20 सेकेड का जबकि आकृति के मामले पर 53 मिनट, आज तक ने शन्नो पर पांच मिनट का और आकृति पर 41 मिनट का और एनडीटीवी 24 गुणा 7 ने शन्नो के मामले पर सात मिनट का और आकृति के मामले पर 56 मिनट का समय दिया।सीएमएस के पिछले तीन साल के अध्ययनों से पता चला है कि खबरिया चैनल आमतौर पर शिक्षा के बुनियादी मुद्दों को कोई प्र्राथमिकता नहीं देते हैं जबकि भावनात्मक मुददों को जरूरत से ज्यादा बढ़ावा देते हैं। आकृति एवं शन्नो की मौत के कवरेज के अध्ययन के दौरान देखा गया कि किसी भी चैनल ने स्कूलों में साफ पानी, बैठने की समुचित व्यवस्था, ब्लैक बोर्ड के अभाव, शिक्षा के लिये कम बजटीय प्रावधान, शिक्षकों की कमी एवं शिक्षण की अन्य समस्यायें, स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और स्कूलों में शिक्षा के घटते स्तर जैसे बुनियादी मुद्दों को उठाना उचित नहीं समझा लेकिन एनडीटीवी जैसे चैनलों ने स्कूलों में आॅक्सीजन सिलिंडर नहीं होने के मुद्दे पर बहस करायी। जिस देश के 90 प्रतिशत स्कूलों में पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है और बैठने के लिये बेंच और स्टूल नहीं है वैसे में स्कूलों में आॅक्सीजन के सिलिंडर होने के बारे में बहस कराना क्या हवा-हवाई और अभिजात्य पूर्वग्रह से प्रभावित नहीं प्रतीत होता है। साफ तौर पर कहा जा सकता है कि हमारे देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की तरह लोकतंत्र का चैथा खंभा भी वर्गीय भेदभाव और इलीट सोच से ग्रस्त हैं
सीएमएस के पिछले तीन साल के अध्ययन के दौरान देखा गया कि खबरिया चैनलों पर शिक्षा संबंधी मुद्दे को एक प्रतिशत से भी कम समय दिया जाता रहा है और साल दर साल इस प्रतिशत में लगातार कमी आ रही है। अध्ययन के अनुसार खबरिया चैनलों ने शिक्षा के मुद्दे पर कवरेज वर्ष 2006 में 0।9 प्रतिशत था। वर्ष 2008 में यह 0.7 प्रतिशत तथा 2008 में यह घटकर 0.6 प्रतिशत हो गया। यही नहीं एक शिक्षा पर सरकार की ओर से किये जाने वाले तीन प्रतिशत के अत्यंत कम खर्च को कभी किसी खबरिया चैनल ने प्रमुखता के साथ नहीं उठाया। यही नहीं चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के साथ-साथ चैनलों ने भी शिक्षा के मुद्दों की अनदेखी की। आकृति और शन्नो के मामले में खबरिया चैनलो ने जो महत्व दिया उसका एक कारण यह भी था कि ये दोनों मौतें देश की राजधानी में हुयी। खबरिया चैनलो पर न केवल अमीरी-गरीबी के बीच भेदभाव किया है बल्कि दिल्ली-मुंबई तथा देश के अन्य इलाकों के बीच भी भारी भेदभाव दिखता है। सीएमएस के अध्ययन के अनुसार प्राइम टाइम पर खबरिया चैनलों पर दिल्ली-मुंबई की खबरों को 55 से 60 प्रतिशत का समय दिया जाता है। दिल्ली को 35 प्रतिशत जबकि मुंबई को 26 प्रतिशत समय दिया जाता है।

1 comment:

Kapil said...

इस जानकारी के लिए शुक्रिया विनोदजी।