वैश्विक मंदी ने किया श्रमिकों का स्वास्थ्य चौपट

विश्‍व मजदूर दिवस के मौके पर - एक अध्‍ययन की रिपोर्ट 

नई दिल्ली। वैश्विक मंदी के चलते कार्पोरेट जगत के शुध्द मुनाफे में तो कमी आयी ही है कार्पोरेट श्रमशक्ति का स्वास्थ्य भी चौपट हुआ है। कार्पोरेट अधिकारियों के मध्य हेल्थआन फाउंडेशन द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं ने कहा कि अर्थव्यस्था की हालिया मंदी और उसके फलस्वरूप नौकरी एवं वेतन में कटौती ने उनकी चिंता के स्तर को बढ़ाया है और कार्य-स्थल का बढ़ा हुआ दबाव स्वयं को बहुधा की बीमारी और चिंता के स्तर में वृध्दि में स्वयं को प्रकट कर रहा है। 59 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि मौजूदा नौकरी के कारण अगर उनके तनाव में और वृध्दि होती है या उनका वेतन कम होता है तो वे काम छोड़ देंगे।

यह सर्वेक्षण दिल्ली, बंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता में पिछले पखवाड़े 30-45 वर्ष आयु-समूह के 57 प्रतिशत पुरुष और 43 प्रतिशत महिला कार्यरत अधिकारियों के मध्य कराया गया। उद्योगों के सभी प्रमुख सेक्टरों को कवर किया गया और मुख्य धारा के सभी प्रकार्यों से कमोबेश बराबर की संख्या में उत्तरदाताओं से प्रश्न पूछे गये।

सर्वेक्षण की रिपोर्ट संकेत देती है कि बड़ी संख्या में अधिकारियों ने मेडिकल अवकाश प्राप्त किये और बहुत से अधिकारियों ने तो उससे अधिक छुट्टियां लीं जितने के वे हकदार बनते थे।  
तकरीबन 64  प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि कार्य स्थल का तनाव उनकी उत्पादकता पर बुरा असर डालता है जबकि 76 प्रतिशत इस बात से सहमत थे कि उनके काम का हड़बड़ी वाला शेडयूल सेहत के प्रति लापरवाही बरतने का मुख्य कारण रहा है। उत्तरदाताओं ने इसके अलावा कार्यस्थल के तनाव को पाचन-तंत्र की गड़बड़ियों (एसिडिटी, अम्लशूल, पेट के अक्सर खराब रहने), थकान और निष्क्रियता, गर्दन दर्द, पीठ दर्द, चिंता और अवसाद जैसी बार-बार पेश होने वाली स्वास्थ्य की समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया।  
हेल्थऑन फाउंडेशन के संयोजक डॉ. सीमांत शर्मा ने कहा, ''सर्वेक्षण के निष्कर्षों से कार्पोरेट जगत को चेत जाना चाहिए और क्या ही अच्छा हो कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठायें कि अधिकारी स्वस्थ एवं उत्पादक बने रहें।''

लेकिन, आदित्य बिरला सेंटर के एचआर प्रमुख श्री विनीत कौल का मानना है कि तनाव का बढ़ता स्तर व्यक्तियों की अलग-अलग स्थितियों तक सीमित है और इसे कार्पोरेट सेक्टर में सामान्य प्रवृत्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता।   
कर्मचारियों के मध्य तनाव का प्रबंध करने के लिए उनके संगठन द्वारा उठाये गये कदमों की बाबत उन्होंने कहा, ''हम संगठन में अपनी श्रमशक्ति की भूमिका के बारे में उससे निरंतर बातचीत करते रहते हैं। हम चाहते हैं कि उनके काम से जुड़े मामलाें और उन्हें प्रभावित करने वाली नीतियों से उनका जुड़ाव बढ़े। हम यह सुनिश्चित  करते हैं कि कार्य-प्रदर्शन की कद्र हो  और ऐसे मनमाने फैसले लेने से बचते हैं जो कि उनमें असंतोष बढ़ा सकते हैं।'' 
सर्वेक्षण दर्शाता है कि देश के सभी महानगरों में कार्यरत पेशेवरों के मध्य काम से जुड़ी स्वास्थ्य शिकायतों में उछाल आया है। डॉ. शर्मा का मानना है कि इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए काम से जुड़े स्वास्थ्य के मुद्दों और उन्हें समुचित ढंग से संबोधित करने के संभावित तरीकों के बारे में जागरुकता पैदा करने की निश्चित रूप से आवश्यकता है। डॉ. शर्मा की राय में यह काम  से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से बेहतर ढंग से निपटने हेतु अधिकारियों को तैयार करने में मदद करेगी।

मुंबई के जाने-माने फिजिशियन डॉ. हेमंत थैकर ने कहा, ''कार्पोरेट कार्य-क्षेत्र में अब स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम की बजाय स्वास्थ्य के संरक्षण पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। खुराक में फर्क, कार्यस्थल के तनाव और रोजमर्रा की गतिविधियों को देखते हुए स्वास्थ्य के इस संरक्षण को दिन प्रतिदिन की जीवनशैली को उपयुक्त स्वास्थ्य प्रबंधन में अनूदित करना चाहिए। काम की जगह पर उत्पादकता में वृध्दि करने के लिए इसके साथ नियमित जांच और आवश्यक चिकित्सकीय हस्तक्षेप होना चाहिए।''  

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

मंदी का लाभ भी पूंजीपति ही उठाता है और सारी बरबादी श्रमजीवियों पर लाद दी जाती है। पर बरबाद आशियाँ भी तो चेते।